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________________ १५२ तीर्थङ्कर महावीर ते मज्ज मंसं लसणं च भोच्चा, अन्नच्छ वासं परिकप्पयंति । -सूत्रकृतांग ( बाबू वाला ) श्रु० १, अ० ७, गा० १३ पृष्ठ ३३७ - वे मूर्ख मद्य-मांस तथा लहसुन का उपभोग करके मोक्ष नहीं वरन् अपना संसार बढ़ाते हैं । मोक्ष तो शील के बिना नहीं होता। (६)............ अमज्ज मंसाससिणो...." -सूत्रकृतांग (बाबू वाला ) श्रु० २, अ० २, सू० ७२ पृष्ठ ७५९ --वे मद्य-मांस का प्रयोग नहीं करते । (७) जे यावि भ॑जति तहप्पगारं सेवंति ते पावम जातमाणा । मणं न एयं कुसला करेंति वायावि एसा वुइयाउ मिच्छा ॥ -सूत्रकृतांग (बाबू वाला) श्रु० २, अ०६, गा० ३९ पृष्ठ ९३६ -जो रसगृद्ध होकर मांस का भोजन करता है, वह अज्ञानी पुरुष केवल पाप का सेवन करता है। जो कुशल पण्डित है, वह ऐसा नहीं करता। 'मांस-भक्षण से दोष नहीं है', ऐसा वाणी पंडित नहीं बोलता । 'आचारांग-सूत्र' में तो साधु को उस स्थल पर जाने का ही निषेध किया गया है, जहाँ मांसादि मिलने की आशंका हो। वहाँ पाठ आता है से भिक्खू वा० जाव समाणे से जं पुण जाणेजा मंसाई वा मच्छाई मंस खलं वा मच्छखलं वा ... - 'नो अभिसंधारिज्ज गमणाए -आचारांगसूत्र सटीक, श्रु० २, अ० १, उ० ४, सूत्र २४५ पत्र ३०४-१ १-दे ड्र नाट ड्रिंक लिकर्स पार ईट मीट -सेक्रेड बुक्स आव द' ईस्ट, वाल्यूम ४५, सूत्रकृतांग बुक २, लेक्चर २, सूत्र ७२, पृष्ठ ३७६ 'प्रश्नव्याकरण' अभयदेव सूरि की टीकासहित पत्र १००.१ में भी 'प्रमजमंसासिएहिं' पाठ आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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