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'आमिष' का अर्थ
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जैन-आचार्यों तथा ग्रन्थों ने भी किया है । हम यहाँ कुछ प्रमाण दे
(१) योगशास्त्र (स्वोपज्ञटीका-सहित, प्रकाश ३, श्लोक १२३) में आये 'आमिष' की टीका हेमचन्द्राचार्य ने इस प्रकार की है
आमिषं भक्ष्यं पेयं च, तच्च पक्कान फलाक्षत दीपजलघृतपूर्णपात्रादि रूपं ।
–पत्र २१०-२ (२) आमिषमाहार इहापि तथैव फलादि सकल नैवेद्य परिग्रहो दृश्यः
-पंचाशक सटीक, पं० ६, गा०२६, पत्र ११–१ (३) 'आमिषं' धनधान्यादि
-उत्तराध्ययन नेमिचन्द्र की टीका, अ० १४ गा ४८ पत्र २१३-१ (४) 'अमिषाद्'—विषयादेः :
-~-वही, अ० १४, गा ४१, पत्र २१२-२ (५) अब हम यहाँ संस्कृत-कोष' से भी 'आमिष' का अर्थ दे
(अ) डिजायर, लस्ट- यथा - निरामिषो विनिर्मुक्तः प्रशान्तः सुसुखी भव
महाभारत १२-१७-२ निरपेक्षो निरामिषः
-मनुस्मृति ६-४९
१-प्राप्टेज संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी, भाग १, पृष्ठ २४५-३४६ । २-३स पर कल्लूक भट्ट ने टीका में लिखा हैनिरामिषः आमिषं विषयस्तदभिलाष रहितः
-~-मनुस्मृति कल्लूक भट्ट की टीका सहित, पृष्ठ २२०
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