SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० तीर्थङ्कर महावीर भगवती के पाठ पर विचार इन प्रसंगों को ध्यान में रखकर अब हम भगवतीसूत्र वाले पाठ पर विचार करेंगे । अभयदेव सूरि ने उक्त पाट की टीका इस प्रकार की है :_ 'दुवे कवोया' इत्यादेः श्रयमाणमेवार्थ केचिन्मन्यते, अन्ये त्वाहुः-कपोतका-पक्षि विशेषस्तद्वद् ये फले वर्ण साधर्म्यात्ते कपोते, कूष्मांडे ह्रस्वे कपोते कपोतके ते च ते शरीरे वनस्पतिजीवदेहत्वात् कपोतकशरीरे अथवा कपोतकशरीरे इव धूसरवर्णसाधादेव कपोतक शरीरे-कूष्मांड फले 'परिश्रासिए' त्ति परिवासितं ह्यस्तन मित्यर्थः, 'मज्जारकडए' इत्यादेरपि केचित् श्रूयमाणमेवार्थ मन्यन्ते, अन्ये त्वाहु:-मार्जारो वायुविशेषस्तदुपशमनाय कृतं-संस्कृतं मार्जारकृतम्, अपरे त्वाहुः-मार्जारो विरालिकाभिधानो वनस्पति विशेषस्तेन कृतं-भावितं यत्तत्तथा किं तत् इति ? प्राह 'कुर्कुटक मांसकं' बीजपूरक कटाहम्" लगभग इसी प्रकार की टीका दानशेखर गणि ने भी की है। अभयदेव को शंकाशील मानने वाले स्वयं भ्रम में यहाँ टीकाकार ने भी 'कवोय' से 'कुष्माण्ड' और 'कुक्कुट' से 'बीजपूरक' अर्थ लेने की बात कही है। टीका में 'श्रूयमाणमेवार्थ केचिन्मन्यन्ते' पाठ आया है । इस पर जोर देकर कुछ लोग कहते हैं कि, इस अर्थ के सम्बन्ध में अभयदेव सूरि शंकाशील थे। पर, ऐसी शंका करना भी निरर्थक है । भगवती सूत्र की टीका अभयदेव सूरि ने वि० सं० ११२८ में लिखी। इससे पूर्व ११२० में ही वह तृतीय अंग ठाणांग की टीका लिख १–भगवतीसूत्र सटीक, पत्र १२७० २–भगवतीसूत्र दानशेखर की टीका, पत्र २२३-१, २२३-२ ३-जैन-ग्रन्थावलि ( जैन श्वेताम्बर कानफरेंस, बम्बई ) पष्ठ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy