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तीर्थंकर महावीर अभयदान और (३) धर्मोपग्रहदान ।' दानप्रदीप' में धर्मोपग्रह दान के ८ प्रकार बताते हुए उपदेशमाला का निम्नलिखित पाठ दिया है:
१ वसही २-३ सयणासण ४ भत्त ५ पाण ६ भेसज्ज ७ वत्थ ८ पत्ताई।
-१वसति, २ सयन, ३ असन, ४ भत्त, '५ पान, ६ भेसज्ज, ७. वस्त्र और ८ पात्र ।
मेरे पास किसी हस्तलिखित पोथी के कुछ पत्र हैं। उसका प्रारम्भ का पत्र साथ में न होने के कारण, उसका नाम बिलकुल ज्ञात न हो सका । उसमें धर्मोपग्रह दानों का विवरण देते हुए भेषज-दान के प्रकरण में निम्नलिखित पाठ दिया है। उससे भी यह स्पष्ट हो जाता है कि, रेवती ने दान में क्या दिया था । उक्त पाठ इस प्रकार है:__भेषजं पुदितो सुह पत्ते लहई उत्तमं लाहं जह तहाण वीरस्स रेवई सावई परमा। तथाहि भगवान् श्री महावीरो गोशालक तेजोलेश्या व्यतिकरानन्तरम् मेंढिक ग्रामे पानकोष्ठ कानि चैत्ये समवसृत । तत्र दाघज्वरातिसारेण पीड़ित दुर्बलो जातः । तत्र भगवन्तम् वन्दित्वा देवा गच्छन्तो परस्परम् इति वदन्तियथा भगवन् श्री महावीर स्तोक दिन मध्ये कालं करिष्यति यत् प्रतिकाराय भेषजं ना दत्ते । एवं श्रुत्वा मालुकाकच्छासन्न भुवि कायोत्सर्ग स्थितेन जिन शिष्येण सिंह साधुना चिन्तितम् ।
१-दाणं च तत्थ तिविहं, नाण्ययाणं च अभयदाणं च ।
धम्मो वग्गह दाणं च, नाण दाणं इमं तत्थ ॥
-धर्मरत्न प्रकरण, देवेन्द्र सूरि की टीका सहित, गाथा ५२, पत्र २२३-२ २-दानप्रदीप सटीक पत्र ६४-२। ३-उपदेशमाला दोघट्टी-टीका सहित, गाथा २४० पत्र ४२०-२।
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