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________________ रेवती ने दान में दिया १३७ -ठाणांगसूत्र ( उत्तरार्द्ध ) सटीक, ठा० ९, उ० ३, सू० ६९२ पत्र ४५७-१ पक्कः कुष्मांड कटाहो यो मह्य तं तु मा ग्रही ॥५५०॥ बीजपूर कटाहोऽस्ति यः पक्को गृह हेतवे । तं गृहीत्वा समागच्छ करिष्ये तेन वो धृतिम् ।।५५१॥ -त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ८, पत्र ११८-१ (२) द्वे कूष्मांडफले ये च, मदर्थ संस्कृते तया ॥१॥ ताभ्यां नार्थ किन्तु बीजपूर पाकः कृतस्तया । स्वीकृते तं च निर्दोषमेषणीयं समाहार ॥२॥ -लोकप्रकाश ( काल-लोकप्रकाश ) सर्ग ३४, पत्र ५५५ (४) यद्यस्य परमेश्वरस्यातीसार स्फेटन समर्थ बीजपूरकावलेह भेषजं दीयते तदाऽतीसार रोगः प्रशाम्यति । तया रेवत्या त्रिभुवनगुरो रोगोपशान्ति निमित्तं भावोल्लास पूर्वमौषधंदत्तम्। -भरतेश्वर-बाहुबलि-वृत्ति, द्वितीय विभाग, पत्र ३२९-१ (५) ततो गच्छ त्वं नगर मध्ये, तत्र रेवत्यभिधानया गृहपतिपत्न्या मदर्थ द्वे कुष्माण्ड फल शरीरे उपस्कृते न च ताभ्यां प्रयोजनं, तथाऽन्यनिर्दोषमस्ति तद्गृहे परं पर्युषितं मार्जाराभिधानस्य वायोनिर्वृत्तिकारकं कुक्कुटमांसकं बीजपूरैक कटाह मित्यर्थः तदानय तेन प्रयोजनं . --उपदेशप्रासाद, भाग ३, पत्र १९९-१ एक भिन्न प्रसंग में रेवती-दान जैन-शास्त्रों में एक भिन्न-प्रसंग में भी रेवती के दान का उल्लेख है । धर्मरत्नप्रकरण में दान तीन प्रकार के बताये गये हैं--(१) ज्ञान-दान (२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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