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________________ तीर्थंकर महावीर इस सूत्र में आये 'कवोयसरीरा', 'मजार कडए', 'कुक्कुडमंसए' शब्दों को लेकर जैन-परम्परा और इतिहास से अपरिचित लोग तरह-तरह की अनर्गल और असम्बद्ध बातें किया करते हैं। इन शब्दों पर अधिक विचार करने से पूर्व हम यह कह दें कि, वे 'औषधियाँ'' थीं। इनका साधारण रूप में अर्थ करना किंचित् मात्र उचित नहीं है । रेवती ने दान में क्या दिया ? और, रेवती ने औषधि-रूप में दान में क्या दिया, इसका भी बहुत स्पष्ट उल्लेख जैन ग्रन्थों में है। ऊपर के प्रसंगों के स्पष्टीकरण करने और उनके विवाद में जाने से पूर्व, हम यहाँ उन उद्धरणों को दे देना चाहेंगे, जिसमें रेवती के दान को स्पष्ट रूप में व्यक्त किया गया है ।। (१) तत्र रेवत्याभिधानया गृहपति-पत्न्या मदर्थ द्वे कुष्माण्ड फलं शरीरे उपस्कृते, न च ताभ्यां प्रयोजनं, तथाऽन्यदस्ति तद्गृहे परिवासितं मार्जाराभिधानस्य वायोनिवृत्तिकारक कुक्कुट मांसकं बीजपूरककटाह मित्यर्थः.. १--[अ] नेमिचन्द्र-रचित 'महावीर चरियं' [ पत्र ८४०२, श्लोक १९३०, १६३२ १६३४ में 'पोसह' शब्द आता हैं। [] कल्पसूत्र [संधेह विषौषधि टीका, पत्र ११५] में रेवती-प्रकरण में आता हैभगवस्तथा विधौषधिदानेनारोग्यदातृ [३] ऐसा ही उल्लेख कल्पसूत्र-किरणावलि, पत्र १२७-१ में भी है। [३] कल्पसूत्र सुबोधिका-टीका [ व्याख्यान ६, सूत्र १३७, पत्र ३५% ] में भी ऐसा ही उल्लेख है। [3] लोकप्रकाश, विभाग ४, सर्ग ३४, श्लोक ३८३ पत्र ५५५-२ में भी स्पष्ट 'औषध' शब्द है। [3] गुण चन्द्र के महावीर-चरियं [ पत्र २८०-१ ] में 'पोसह' लिखा है । [ए] भरतेश्वर-वाहुबलि-वृत्ति ( भाग २ पत्र ३२९-१ ) में भी ऐसा ही है । [ऐ] उपदेशप्रासाद भाग ३, पत्र १६६-२ में भी 'औषध' शब्द आया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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