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भगवान् मेंढियग्राम में
१३५ इसे सुनकर रेवती की बड़ा आश्चर्य हुआ । उसने सीह से पूछा कि किस ज्ञानी-तपस्वी ने यह बात आपको बतायो ।
भगवान् द्वारा बताये जाने की बात सुनकर रेवती बड़ी संतुष्ट हुई । वह रसोई पर में गयी और छीके से तपेली उतारकर खोला और मुनि के पात्र में सब बिजौरापाक रख दिया। उस शुभदान से रेवती का मनुष्य-जन्म सफल हुआ और उसने देवगति का आयुष्य बाँधा ।
उसके प्रयोग से भगवान् के रोग का शमन हो गया और उनके स्वास्थ्य-लाभ से श्रम-श्रमणियों को कौन कहे देव-मनुष्य और असुरों सहित समग्र विश्व को सन्तोष प्राप्त हुआ।'
रेवती-दान
भगवान् की बीमारी और उस बीमारी के काल में सीह अनागार को बुलाने और रेवती के घर भेजने की बात हम पहले संक्षेप में लिख चुके हैं। सीह को रेवती के घर भेजने का उल्लेख भगवती-सूत्र में इस प्रकार है:
तुम सीहा ! मेढिय गाम नगरं रेवतीए गाहावतिणीए गिहे, तत्थ णं रेवतीए गाहावतिणीए ममं अट्टाए दुवे कवोय सरीरा उवक्खडिया तेहि नो अट्रो, अत्थि से अन्ने परियासियाए मज्जारकडए कुक्कुडमंसए तमाहराहि एएणं अट्ठो
१-- भगवतीसूत्र सटीक शतक १५ उदेशा १ [गौड़ी जी, बम्बई] २- भगवतीसूत्र सटीक, शतक १५, उद्देशा १, सूत्र ५५७, पत्र १२६१
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