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________________ १३४ तीर्थङ्कर महावीर से मैं ६ मास में काल नहीं करूँगा । मैं गंधहस्ति के समान जिनरूप में अभी १६ वर्षों तक विचरूँगा। - 'हे सीह ! तुम मेंढियग्राम में रेवती गृहपत्नी के घर जाओ। उसने मेरे लिए दो कुम्हड़े का पाक तैयार किया है। मुझे उसकी आवश्यकता नहीं है। उसने अपने लिए' बिजौरे का पाक तैयार किया है। उसे ले आओ । मुझे उसकी आवश्यकता है।” भगवान् की आज्ञा पाकर सौह उन्हें वन्दन-नमस्कार करके त्वरा-चपलता और उतावलापना-रहित होकर सीह ने मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना' की और प्रतिलेखना के बाद पुनः भगवान् की वन्दना की। वह रेवती के घर आये । साधु को आता देखकर गृहपत्नी खड़ी हो गयी और वंदननमस्कार करके उसने साधु से आने का प्रयोजन पूछा। सीह ने कहा-"तुमने भगवान् के लिए कुम्हड़े की जो औषधी तैयार की है, उसकी आवश्यकता नहीं है। परन्तु, जो विजौरापाक है, उसकी भगवान् को आवश्यकता है।" १-'नवभारत टाइम्स' (दैनिक] २६ मार्च १९६१ में मुनि महेन्द्रकुमार ने 'भगवान् महावीर के कुछ जीवन प्रसंग" लेख में लिखा है कि रेवती ने वह दवा अपने घोड़े के लिए बनायी थी पर किसी जैन-शास्त्र में ऐसा उल्लेख नहीं मिलता। २-यहाँ मूल पाठ है 'मुहपत्तियं पडिलेहेति पडिलेहेत्ता' इसका अर्थ अमोलक ऋषि ने [भगवतीसूत्र, पत्र २१२४] किया हैं 'मुखपत्ति की प्रतिलेखना कर' । इससे स्पष्ट है कि सीह ने मुखपत्ति को मुँह में बाँध नहीर खा था। मुखपत्ती की प्रतिलेखना सम्बन्धी पाठ भगवतीसूत्र सठीक शतक २, उ० ५, सूत्र ११०, पत्र २४६; उत्तराध्ययन [नेमिचन्द्र की टीका सहित] अ० २६, गाथा २३ पत्रा ३२१-१ उवासगदसाओ [पी० एल० वैद्य-सम्पादित] अ० १, सूत्रा ७७ पष्ठ १७ में भी है। उपासकदशांक घासीलाल जी ने भी वृत्तिसहित प्रकाशित कराया है। उसमें पष्ठ ३७२ पर यह पाठ आया है। उसका अर्थ पृष्ठ ३७६ पर उन्होंने भी दिया है"मुखवस्त्रिका की पडिलेहणा की।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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