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________________ अयंपुल और गोशालक १२६ के पास जाकर अपनी शंका मिटाने का निश्चय किया। ऐसा विचार कर उसने स्नान किया, उत्तम कपड़े पहने और पैदल चलकर हालाहला कुम्भकारिन को शाला में आया । वहाँ उसने गोशाला को आम्रफल लिए यावत् गात्र को शीतल जल से सिंचित करते और हालाहला को अंजलिकर्म करते देखा । देखकर वह लजित हो गया और पीछे लौटने लगा। उसे देखकर आजीवक-स्थविरों ने उसे बुलाया । अयंपुल उनके पास गया और उनसे उसने अपनी शंका कह दी। ___ उन आजीवक साधुओं' ने कहा-"अयंपुल ! अपने धर्माचार्य ने . ८ चरम, ४ पेय और ४ अपेय जलों की प्ररूपणा की है । ये चरम हैं, इनके बाद वह सिद्ध होने वाले हैं। तुम स्वयं जाकर उनसे अपना प्रश्न पूछ लो।" अयंपुल जब गोशाला की ओर चला तो गोशाला के शिष्यों ने आम्रफल गिरा देने के लिए संकेत कर दिया । संकेत पाकर गोशाला ने आम्रफल गिरा दिया। इसके बाद आकर अयंपुल ने तीन बार प्रदक्षिणा की। उसके बैठते ही गोशाला ने अयंपुल का प्रश्न उससे कह दिया और पूछा--"क्या यह सत्य है ?" अयंपुल ने स्वीकार कर लिया। तब गोशाला ने कहा-“यह आम्रफल गुठली सहित नहीं है । प्रत्येक को ग्रहण करने योग्य है । यह आम्र नहीं आम्र की छाल है। इसे लेना तीर्थंकर को निर्वाण-काल में कल्पता है । तुम्हारा प्रश्न है-"किस आकार का हल्ला होता है ?" इसका उत्तर यह है कि वह बाँस के मूल के आकार का होता है । १-श्रमण ५ थे-निग्गंथ १, सक्क २, तावस ३, गेरुय ४, अजीव ५ पंचहा समणा ।-प्रवचनसारोद्धार सटीक, पूर्वाद्ध गाथा ७३१ पत्र १२१-१ । आजीवक नग्न रहते थे--सूत्रकृतांग सटीक भाग १, पत्र १२-२ में आता है-आजीविकादीनां परतीथिकानां दिगम्बराणां । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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