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तीर्थङ्कर महावीर है, वैसे बेर का, तिंदुरुक का त्वचा मुख में रखे। थोड़ा चबाये, विशेष चबाये पर पानी न पीये । यह त्वचा पानी है । __"३--चने की फली, मूंग की फली, उड़द की फली, सिंबलि की फली को तरुणपना में, अभिनवपना में, मुख में रखकर थोड़ा चबाये, विशेष चबाये पर पानी न पिये।
___ "x—जो कोई ६ मास पर्यन्त शुद्ध खादिम खाये, दो मास तक भूमि पर शयन करे, दो मास पर्यन्त काष्ठ पर शयन करे, दो मास पर्यन्त दर्भ पर शयन करे, इस तरह करते ६ मास में पूर्णभद्र -मणिभद्र ऐसे दो महद्धिक यावत् महासुख वाले देव उत्पन्न होवें । वे देवता शीतल अथवा आर्द्र हस्त से गात्रों को स्पर्श करे।
"यदि उन देवताओं का अनुमोदन करे कि वे अच्छा करते हैं, तो वह आशीविष पानी का काम करता है। ___“यदि देवताओं का अनुमोदन न करे तो उनके शरीर में अग्निकाम उत्पन्न होवे । अपने तेज से अपने शरीर को जलावे और पीछे सीझे-बुझे यावत् सब दुःखों का अंत करे । यह शुद्ध पानी कहा जाता है।"
अयंपुल और गोशालक उस श्रावस्ती नगरी में अयंपुल-नामक आजीविकोपासक रहता था। वह हालाहला कुम्भकारिन सरीखा ऋद्धिवान् था।
एक बार अयंपुल श्रमणोपासक को पूर्व रात्रि में कुटुम्ब-जागरण करते हुए यह प्रश्न उठा कि 'हल्ला' का आकार क्या है ? उसने गोशाला
( पष्ठ १२७ की पादटिप्पणि का शेषांश ) बंधणातो विप्पु विप्प मुक्काणं निवाघातेणं अधे वीससाए गती पवत्तइ, से तं बंधणविमोयणगती
-प्रज्ञापनासूत्र सटीक, पत्र ३२८-१ १.-इसकी टीका इस प्रकार दी है :गोवालिका तृणसमानाकारः कीटक विशेषः
---भगवतीमूत्र सटीक, पत्र १२५८
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