________________
भगवान् को भविष्यवाणी १२७ (पीने योग्य ) और चार प्रकार के अपानक (न पीने योग्य) बताता है ।
"चार पानक१-गौ की पीट से पड़ा पानी २-हाथ में मसला हुआ पानी ३.-सूर्य के ताप से तपाया हुआ पानी ४-शिला से पड़ा पानी "चार अपानक१–थाल पानी २-त्वचा-पानी ३-सिंबलि-जल' ४-शुद्ध जल वह उनकी परिभाषा इस रूप में बताता है :
“१-पानी से भीगा हुआ थाल, पानी से भीगा हुआ कुल्हड़, पानी से भीगा हुआ कुंभा और पानी से भीगा कलश उक्त पानी से भीगा हुआ मृत्तिकापात्र विशेष को हस्त से स्पर्श करना परन्तु पानी नहीं पीना। यह थाल पानी हुआ।
२-आम्र, अम्बड आदि का जैसा पन्नवना' के १६-4 पद में कहा १-सिंबलिः' त्ति मुद्गादीनां विध्वम्ता फलिः
-आचारांगसूत्र सटीक २, १, १०, २८१ पत्र ३२३-२ । दशवकालिकसूत्र हारिभद्रीय टीका सहित ५-१ गाथा ७३ पत्र १७६-२ में उसकी टीका दी है
'वल्लादि फलिं' २--देवहस्त स्पर्श इति
-भगवतीसूत्र सटीक, पत्र १२५८ ३-जएणं अंबाण वा अंबाडणाण वा माउलुगाण वा बिल्लाण वा कविट्ठाण वा [ भव्वाण वा ] फणसाण वा दालिमाण वा पारेवताण वा 'अक्खोलाण वा चाराण वा वोराण वा तिडुयाण वा पक्काणं परियागयाणं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org