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________________ १२६ तीर्थङ्कर महावीर इन सोलह देशों के घात के लिए, वध के लिए तथा भस्म करने के लिए समर्थ होती । आज वही गोशालक हाथ में आम्र सहित मद्यपान करता हुआ अंजलि कर्मकरता हुआ विचरता है । उस पाप को छिपाने के लिए वह आठ चरम की प्ररूपणा करता है: 9 "१ - चरम पान “ २ – चरम गान “३ – चरम नाटक 61 - चरम अंजलिकर्म -चरम पुष्कलसंवर्त मेध - चरम सेचनक गंधहस्ति - चरम महाशिलाकंटक संग्राम - इस अवसर्पिणी में चौबीस तीर्थकरों में मैं ( गोशाल ) चरम • तीर्थंकर रूप में सिद्ध हूँ । " हे आर्यो ! मंखलिपुत्र गोशालक मिट्टी के पात्र में से ठंडा जल मिली मिट्टी का अपने शरीर पर लेप कर रहा है । " अपने पाप को छिपाने के लिए वह चार प्रकार के पानक 651x “६. 66 66 १ 'चरमे' त्ति न पुनरिदं भविष्यतीति कृत्वा चरमं -भगवतीसूत्र सटीक, श० १५, सूत्र ५५३ पत्र १२५७ २ - चत्तारि मेहा पं० तं० - पुक्खलसंवट्टते, पज्जुने जीमूते जिन्हे पुक्खल वट्टए णं महामेहे एगेणं वासेणं दस वास सहस्साई भावेति - ठाणांगसूत्र सटीक, ठाणा ४, उद्देशा ४, सूत्र ३४७ पत्र २७०-२ - महामेघ चार है [१] पुष्कल संवर्त महा मेघ -- एक बार बरसे तो -अन्नोत्पादन करती रहे । दस हजार वर्ष तक पृथ्वी [२] प्रद्युम्न महामेध - एक बार बरसे तो एकहजार वर्ष तक अन्नोत्पादन होता रहे। [३] जीमूत महामेघ – एक बार बरसे तो १० बरस तक अन्नोत्पादन हो । [४] जिह्न महामेघ - एक बार बरसे तो एक वर्ष तक अन्नोत्पादन हो और -न भी हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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