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तीर्थङ्कर महावीर
इन सोलह देशों के घात के लिए, वध के लिए तथा भस्म करने के लिए समर्थ होती । आज वही गोशालक हाथ में आम्र सहित मद्यपान करता हुआ अंजलि कर्मकरता हुआ विचरता है । उस पाप को छिपाने के लिए वह आठ चरम की प्ररूपणा करता है:
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"१ - चरम पान
“ २ – चरम गान
“३ – चरम नाटक
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- चरम अंजलिकर्म
-चरम पुष्कलसंवर्त मेध
- चरम सेचनक गंधहस्ति
- चरम महाशिलाकंटक संग्राम
- इस अवसर्पिणी में चौबीस तीर्थकरों में मैं ( गोशाल ) चरम • तीर्थंकर रूप में सिद्ध हूँ ।
" हे आर्यो ! मंखलिपुत्र गोशालक मिट्टी के पात्र में से ठंडा जल मिली मिट्टी का अपने शरीर पर लेप कर रहा है ।
" अपने पाप को छिपाने के लिए वह चार प्रकार के पानक
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१ 'चरमे' त्ति न पुनरिदं भविष्यतीति कृत्वा चरमं
-भगवतीसूत्र सटीक, श० १५, सूत्र ५५३ पत्र १२५७ २ - चत्तारि मेहा पं० तं० - पुक्खलसंवट्टते, पज्जुने जीमूते जिन्हे पुक्खल वट्टए णं महामेहे एगेणं वासेणं दस वास सहस्साई भावेति - ठाणांगसूत्र सटीक, ठाणा ४, उद्देशा ४, सूत्र ३४७ पत्र २७०-२ - महामेघ चार है
[१] पुष्कल संवर्त महा मेघ -- एक बार बरसे तो -अन्नोत्पादन करती रहे ।
दस हजार वर्ष तक पृथ्वी
[२] प्रद्युम्न महामेध - एक बार बरसे तो एकहजार वर्ष तक अन्नोत्पादन होता रहे। [३] जीमूत महामेघ – एक बार बरसे तो १० बरस तक अन्नोत्पादन हो ।
[४] जिह्न महामेघ - एक बार बरसे तो एक वर्ष तक अन्नोत्पादन हो और -न भी हो ।
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