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तीर्थङ्कर महावीर
आकृष्ट न होते हुए, भगवान् सदा ध्यानमग्न रहते और इस प्रकार छद्मावस्था में प्रबल पराक्रम प्रदर्शित करने में भगवान् ने कभी प्रमाद नहीं किया ।
हम ऊपर लिख चुके हैं कि, भगवान् ने स्वयं अनुकम्पा भी बात कही है । 'अनुकम्पा' के विरोधीजनों को भगवान् के वचन से सीख लेनी चाहिए ।
भगवान् पर तेजोलेश्या छोड़ना
उसके बाद भगवान् ने भी गोशाला को समझाने की चेष्टा की । भगवान् के समझाने का और भी विपरीत परिणाम हुआ । तैजस्- समुद्घात ' करके गोशाला ७-८ पग पछे की ओर हटा और भगवान् महावीर का वध करने के लिए उसने तेजोलेश्या बाहर निकाली । तेजोलेश्या भगवान् - का चक्कर काटती हुई ऊपर आकाश में उछली और वापस गोशाला के शरीर में प्रविष्ट कर गयी । आकुल होता गोशालक बोला - " हे आयुष्मान् काश्यप ! मेरे तपःतेज से तेरा शरीर व्याप्त हो गया है । तू ६ महीने में पित्तज्वर से और दाह से पीड़ित होकर छद्मस्थावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा ।”
१ - समुद्घात -सम् = एकत्रपना, उत् = प्रबलता से कर्म की निर्जरा अर्थात् एक साथ प्रबलता से जीव-प्रदेशों से कर्मपुल को उदीरणादिक से आकृष्ट करके भोगना समुद्धात है; वेदनादि निमित्तों से जीवन के प्रदेशों का शरीर के भीतर रहते हुए भी बाहर निकलना, वेदना आदि सात समुद्धात... अर्धमागधी कोप ( रतन चन्द्र ), भाग ४, पृष्ठ ६३७
ये समुद्धात सात हैं- - १ वेदना, २ कषाय, ३ मरण, ४ वैक्रिय, ५ तैजस्. ६ आहारक, ७ केवलिक | इनका उल्लेख ठाणांगसूत्र सटीक उत्तरार्द्ध ठाणा ७, उ० ३, - सूत्र ५८६ पत्र ४०६ - २; समवायांगसूत्र, समवाय ७; तथा प्रज्ञापनसूत्र सटीक ( बाबू वाला ) पत्र ७६३ - १ - ७९४ - २ में आया हैं ।
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