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________________ एक शंका और उसका समाधान १२३ दानशेखर गणि ने भी इसी रूप में अपनी टीका (पत्र २१८-२ ) में इस प्रश्न का समाधान किया है। अपनी छद्मावस्था में भगवान् ने किस कारण से गोशाला की तेजोलेश्या से रक्षा की थी, इसका उत्तर भगवती सूत्र में स्वयं भगवान् ने ही दिया है । भगवान् ने उसका कारण बताते हुए कहामंखलिपुत्तस्स अणुकंपणट्टयाए -भगवतीसूत्र सटीक, पत्र १२२२. अर्थात् मखलिपुत्र पर अनुकम्पा के कारण उसकी रक्षा की। वह तो छमावस्था थी । पर, केवल-ज्ञान के बाद भगवान् वीतराग थे। सरागपन समाप्त हो गया था और भूत, वर्तमान तथा भविष्य का ज्ञाता होने के कारण तथा सभी बात जानने के करण वह अवश्यम्भावी घटने वाली घटना से भी पूर्व परिचित थे । पर, रागहीन होने के कारण भगवान् ने इस बार तेजोलेश्या का कोई प्रतिकार नहीं किया ! कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि भगवान् ने गोशाला पर पहले अनुकम्पा दिखाकर भूल की । पर, यह वस्तुतः कहने वाले की भूल है । भगवान् ने अपने तपस्वी-जीवन में भी कभी प्रमाद अथवा पाप कर्म न किया; न किसी से कराया और न करने वाले का अनुमोदन किया। णच्चाण से महावीरे, णोचिय पावगं सय मकासी अन्नेहिं वा ण कारित्था कीरंतंपि णाणु जाणित्था ॥८॥ अकसाती विगयगेही य, सहरूवेसु अमुच्छिए झाति; छउमत्थोवि विपरक्कममाणो, ण पमायं सइंपि कुवित्था ॥१५॥ --आचारांग सूत्र, श्रुतस्कन्ध १, अध्ययन ९, उद्देशा ४ -तत्त्व के ज्ञाता महावीर स्वयं पाप करते नहीं, दूसरे से पाप कराते नहीं और करने वाले का अनुमोदन नहीं करते। कषायरहित होकर, गृद्धिपरिहार करके, शब्दादिक विषयों पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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