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गोशाला का आगमन
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"हे काश्यप ! मैं वही हूँ । हे काश्यप ! कुमारावस्था में ब्रह्मचर्य धारण करने से, अविद्धकर्ण, व्युत्पन्न बुद्धि वाला होने से, प्रव्रज्या ग्रहण करने की मुझमें इच्छा हुई । सात प्रवृत्तिपरिहार शरीरांत प्रवेश भी मैं कर चुका हूँ । वे इस प्रकार हैं-१ ऐणेयक, २ मल्लराम, ३ मंडित, ४ रोह, ५ भरद्वाज, ६ गौतमपुत्र अर्जुन और तत्र ७ मंखलिपुत्र गोशालक के शरीर में प्रवेश किया ।
"१ - सातवें मनुष्य भव मैं मैं उदायी कुंडियायन था । राजगृह नगर के बाहर मंडिकुक्षि- चैत्य' में उदायी कुंडियायन का शरीर छोड़ कर मैंने ऐणेयक के शरीर में प्रवेश किया और २२ वर्ष उसमें रहा ।
“२ – उद्दंडपुर नगर के चन्द्रावतरण चैत्य में ऐणेयक का शरीर छोड़ा और मल्लराम के शरीर में प्रवेश किया । २० वर्ष उसमें रहा ।
३- - चम्पा - नगर के अंगमंदिर- चैत्य में मल्लराम का शरीर छोड़कर मंडित के शरीर में प्रवेश किया और १८ वर्ष उसमें रहा ।
" ४ - वाराणसी नगरी में काममहावन में माल्यमंडित का शरीर छोड़कर रोह के शरीर में प्रवेश किया और १९ वर्ष उसमें रहा
“५ – आलभिया -नगरी के पत्तकलाय - चैत्य में रोह के शरीर से निकल कर भरद्वाज के शरीर में प्रवेश किया और १८ वर्ष वहाँ रहा ।
“६ – वैशाली नगरी के कोण्डिन्यायन चैत्य में गौतमपुत्र अर्जुन के शरीर में प्रवेश करके १७ वर्ष उसमें रहा ।
“७ - - श्रावस्ती में हालाहला की भांडशाला में निकल कर इस गोशालक के शरीर में प्रवेश किया । वर्ष रहने के पश्चात् सर्व दुःखों का अंत करके मुक्त हो जाऊँगा ।
१ - मंडिकुक्षि- चैत्य की स्थिति के सम्बन्ध में राजाओं वाले प्रसंग में श्रेणिक राजा के प्रसंग में विचार किया गया है ।
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अर्जुन के शरीर से
इस शरीर में १६
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