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गोशाला - आनन्द की वार्ता
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हे गौतम! मंगलिपुत्र गोशालक 'जिन' नहीं है; परन्तु 'जिन' शब्द का प्रलाप करता है ।"
पर्षदा जब लौटी तो उसने सर्वत्र कहना प्रारम्भ किया - "हे देवानुप्रियो ! श्रमण भगवान् महावीर कहते हैं कि, मंखलिपुत्र गोशालक 'जिन' नहीं है और 'जिन' का प्रलाप करता हुआ विचर रहा है ।"
गोशाला - आनन्द की वार्ता
उस समय भगवान् महावीर के एक शिष्य आनन्द' थे जो छह-छट्ट की तपस्या कर रहे थे । पारणा के दिन उन्होंने गौतम स्वामी के समान अनुमति ली और उच्च-नीच और मध्यम कुलों में गोचरी के लिए गये। उस समय गोशाला ने उन्हें देखा । और बुलाकर कहा
"हे आनन्द यहाँ आओ और मेरा एक दृष्टान्त सुनो। आज से कितने काल पहले धन के अर्थी, धन में लुब्ध, धन की गवेषणा करने वाले कितने ही छोटे-बड़े वणि विविध प्रकार के बहुत-से भंड' गाड़ी में डालकर और
१ - एक आनन्द का उल्लेख निरयावलिया के कप्पवडिसियाओ के ह-वं अध्ययन में मिलता है । उसकी माता का नाम आनन्दा था । २ वर्षं साधु-धर्म पाल का वह काल करके १० - वें देवलोक प्राणत में गया और महाविदेह में सिद्ध होगा ( गोपाणी-चौकसी सम्पादित निरयावलिया, पृष्ठ ३२-३३ तथा ६० ]
२ - यहाँ पाठ हैं
पढमाए पोरिलिए एवं जहा गोयम सामी
इसका पूरा पाठ उवास गुदसाओ ( पी० एल० वैद्य - सम्पादित ) अध्ययन १, सूत्र ७६ में दिया है ।
३ - टीकाकार ने 'पणिय भंड' की टीका में लिखा है
'पणिय भंडे' त्ति पणितं व्यवहारस्तदर्थं भांडं पणितं वा क्रयाणकम् तद्रूपं भाण्डं न तु भाजनमिति पणित भाण्डं - भगवतीसूत्र सटीक, पत्र १२३४ हिन्दी में इसे कहिये - क्रमाणक, पण्य, बेचने की वस्तु
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