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पणियभूमि
वज्र भूम्याख्यानार्य देशे इत्यर्थः ।
इसी प्रकार की टीका संदेह - विपौषधि- टीका में आचार्य जिनप्रभसूरि
दी है
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वज्रभूमाख्येऽनार्य देशे ।
वज्रभूमि अनार्यदेश के चौमासे का वर्णन आचारांग में आया है । वहाँ उसे "दुच्चर लाढ़माचारी वज्जभूमिं च सुब्भभूमिं च " लिखा है । आचारांग के टीकाकार ने 'सुब्भभूमि' को 'शुभ्रभूमि' कर दिया है; पर यह दोनों ही किसी लिपिकार की भूल है । मूल शब्द वह 'सुम्ह' भूमि होना चाहिए । इसका उल्लेख आर्य और बौद्ध दोनों ही ग्रन्थों में मिलता है । हम यहाँ उसके कुछ प्रमाण दे रहे हैं :
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( १ ) महाभारत के टीकाकार नीलकंठ ने 'सुम्ह' और 'राढ़' को एक ही देश माना है ।
( २ ) 'दिग्विजय - प्रकाश' में राढ़ देश को वीरभूमि से पूर्व और - दामोदर घाटी से उत्तर में बताया गया है ।
( ३ ) इसका उल्लेख बौद्ध ग्रन्थों में भी आता है। संयुक्त निकार्य और 'उसकी टीका सारत्थपकासिनी तथा तेलपत्त- जातक में इसका नाम आता है ।
१ - वही, पत्र वही ।
२- संदेह - विषौषधि - टीका, पत्र ११० ।
३ - आचारांग सूत्र सटीक, १-६-३ पत्र २८१ ।
४ - महाभारत की टीका २, ३०, १६, हिस्ट्री श्राव बेंगाल ( आर० सी० - मजूमदार लिखित ) भाग १, पृष्ठ १०
५ - ' वसुमति' माघ १३४०, पृष्ठ ६१०; हिस्ट्री आव बेंगाल ( मजूमदार - लिखित) भाग १, पृष्ठ १०
६ - संयुक्त निकाय ( हिन्दी अनुवाद ) भाग २, पृष्ठ ६६१, ६६५, ६६६ ७ - सारत्थप्पकासिनी ३, १८, १
८ - जातक ( हिन्दी अनुवाद) भाग १, तेलपत्त जातक (१६) पृष्ठ ५५६, जातक कथा ( मूल ) पृष्ठ २८७
ह - 'डिक्शनरी श्राव पाली प्रापर नेम्स' भाग २, पृष्ठ १२५२
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