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तीर्थकर महावीर और दोनों के घर पंचदिव्य प्रकट हुए। चौथे मास क्षमण के अन्त में मैंने नालंदा के निकट स्थित कोल्लाग-सन्निवेश में बहुल-नामक ब्राह्मण के 'घर भिक्षा ग्रहण की।
__ "मुझे तंतुवामशाला में न पाकर गोशाला मुंडित होकर, अपना वस्त्र आदि त्याग कर कोल्लाग में आया । गली-कूचे में खोजता-खोजता कोल्लाग सन्निवेश के बाहर पणियभूमि' मैं वह मुझे मिला।
__ "वहाँ तीन बार मेरी प्रदक्षिणा करके वह बोला-'हे भगवन् ! आप हमारे धर्माचार्य हैं और मैं आपका शिष्य हूँ ।' हे गौतम ! इस बार मैंने गोशाला की बात स्वीकार कर ली। उसके बाद ६ वर्षों तक पणियभूमि तक वह मेरे साथ विहार करता रहा ।”
पणियभूमि 'पणियभूमि' शब्द पर टीका करते हुए भगवतीसूत्र की टीका में लिखा है__ पणितभूमेरारभ्य प्रणीतभूमौ वा मनोज्ञभूमौ विहृत वानिति योगः। ___ कल्पसूत्र में जहाँ भगवान् के वर्षावास गिनाये गये हैं, वहाँ भी एक वर्षावास ‘पणिअभूमि' में बिताने का उल्लेख है। सुबोधिका-टीका में उसकी टीका इस प्रकार दी है :१- 'पणिय भूमि' की टीका करते हुए भगवतीसूत्र के टीकाकार ने लिखा है'भाण्ड विश्राम स्थाने प्रणीत भूमौ वा मनोज्ञ भूमौ (पत्र १२१६) 'पणिय' शब्द सभाष्यचूर्णि निशीथ में भी आया है। हम उसका उल्लेख पष्ठ १०७ पर पादटिप्पणी में कर चुके हैं। यहाँ पण्यिभूमि वह भूमि है, जहाँ भगवान् ठहरे थे ।
आप्टेज 'संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी' में 'प्रणीत' का अर्थ डेलिवर्ड', 'गिवेन', 'प्राफर्ड', 'प्रेजेंटेड' दिया है अर्थात् वह भूमि जो भगवान् को ठहरने के लिए दी गयी थी।
२-~भगवतीसूत्र सटीक पत्र १२१६ । ३-कल्पसूत्र सुबोधिका टीका सहित, व्याख्यान ६, सूत्र १२२, पत्र ३४२ ।
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