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तीर्थंकर महावीर
" उस समय सरवण - नामक सन्निवेश था । उस सरवण सन्निवेश में गोहुल नामका ब्राह्मण रहा था । वह ऋद्धिवाला और अपरिभूत था, ऋग्वेदादि का पंडित था और सुपरिनिष्ठ था । गोशाला थी ।
उस गोबहुल की
"मंखली चित्र - फलक हाथ में लेकर अपनी गर्भवती पत्नी के साथ ग्रामानुग्राम भिक्षाटन करता हुआ सरवण - नामक ग्राम में आया और गोबहुल की गोशाला के एक विभाग में अपने भंडोपकरण उसने रख दिये । गर्भ के ९। मास पूरे हो रहे थे । अतः यहीं भद्रा को पुत्र पैदा हो गया । ११ दिन बीतने पर बारहवें दिन उस पुत्र का गुगनिष्पन्न नाम गोशाला रखा गया ( क्योंकि वह गोशाला में पैदा हुआ था । ' )
" बचपन पार कर चुकने के बाद गोशाला स्वयं चित्रफलक लेकर भिक्षाटन करने लगा ।
"उस समय ३० वर्ष गृहवास में बिताकर, माता-पिता के स्वर्ग-गमन के पश्चात् एक देवदूष्य लेकर मैंने साधु-त्रत स्वीकार किया । उस समय अर्द्ध मास खमण की तपस्या करता हुआ, अस्थिकग्राम को निश्रा में
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( पृष्ठ १०७ पाद टीप्पणि का शेषांश )
बौद्ध ग्रंथों में उसका नाम मक्खली-गोशाला मिलता है। सामञ्जफल - सुत्त की टीका में बुद्धघोष ने लिखा है कि गोशाला दास था । फिसलन वाली भूमि में तेल का घड़ा लेकर जा रहा था । उसके मालिक ने उसे चेतावनी दी - 'तात मा खलं इति ।' इसके बावजूद उसने तेल नष्ट कर दिया । तेल नष्ट होने के बाद मालिक के डर से वह भागा | पर, मालिक ने उसके दास-करण का टोका पकड़ लिया। अपना वस्त्र छोड़कर गोशाला नंगा ही भागा । इस प्रकार वह नग्न साधु हो गया और - मालिक द्वारा कहे गये 'मा खलि' शब्द के आधार पर वह 'मक्खी' कहा जाने - डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स, भाग २, पृष्ठ ४००
लगा ।
१ - गोशालक का जन्म गोशाला में हुआ था, ऐसा सामज्ज फलसुत्त की टीका में बुद्धघोष ने भी लिखा है - सुमंगल विलासिनी - पृष्ठ १४३-४; आजीवक ( बारामलिखित) पृष्ठ ३७
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