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भगवान् श्रावस्ती में लौटकर इन्द्रभूति जब आये तो समवसरण के बाद पर्षदा वापस चली जाने पर इन्द्रभूति ने भगवान् से पूछा-“हे देवानुप्रिय ! मंखलीपुत्र गोशालक अपने को 'जिन' कहता है और 'जिन' शब्द का प्रकाश करता विचर रहा है । यह किस प्रकार माना जा सकता है ? यह कैसे सम्भव है ? मंखलिपुत्र गोशालक के जन्म से लेकर अंत तक का वृतांत आपसे सुनना चाहता हूँ।”
मंखलिपुत्र का जीवन इस प्रश्न को सुनकर भगवान् बोले- "हे गौतम ! तुमने बहुत-से मनुष्यों से सुना कि मंखलिपुत्र अपने को 'जिन' कहकर विचरता है। वह मिथ्या है । मैं इसे इस रूप मैं कहता हूँ कि मंखलिपुत्र गोशाला का पिता मंख जाति का मंखलि' नामक व्यक्ति था। मंखलि को भद्रा-नामकी भार्या थी। एक बार भद्रा गर्भवती हुई थी।
(पृष्ठ १०६ की पादटिप्पणि का शेषांश )
(१) पणिय साला-जत्थ भायणाणि विक्केति, वणिय, कुंभकारो वा एसा पणियसाला
-जहाँ भांड बेचे जाँये वह पणियसाला (२) भंडशाला–जहिं भयणाणि संगोवियाणि अच्छंति -~-जहाँ भांडसुरक्षित रखे जायें (३) कम्मसाला-जत्थकम्मं करेति कुम्भकारो -जहाँ कुंभकार भांड बनाता है (४) पयणसाला जहिं पच्चंति भायणाणि -जहाँ भांड पकाये जाते हैं (५) इंधणसाला जत्थ तण करिसभारा अच्छति
-जहाँ वह ईंधन संग्रह करता है--निशीथ समाष्य चूर्णि, भाग ४, पृष्ठ ६२ १-'विश्वोद्धारक महावीर', भाग १ ( पृष्ठ ११२ ) में गोशाला के पिता का नाम गोबाहुल लिखा है, जो सर्वथा अशुद्ध और शास्त्रों में आये प्रसंगों से प्रसिद्ध हैं ( देखिये आवश्यकचूर्णि, पूर्वार्द्ध, पत्र २८२ ) ।
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