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________________ १०४ तीर्थङ्कर महावीर हैं । प्रसंगवश हम पाठकों का ध्यान उत्पल की ओर आकृष्ट करना चाहते हैं । उसका वर्णन हम पहले कर चुके हैं।' निमित्त जैन-शास्त्रों में ८ निमित्त बताये गये हैं। ठाणांगसूत्र में उनके नाम इस प्रकार गिनाये गये हैं : अट्टविहे महानिमित्त पं० तं०-भोमे १, उप्पाते २, सुविणे३ अंतलिक्खे ४, अंगे ५, सरे ६, लक्खणे ७, वंजणे ८।' ये ही नाम भगवतीसूत्र की टीका मैं तथा कल्पसूत्र की सुबोधिका टीका मैं भी दिये हैं। इन अष्टांग निमित्तों के अतिरिक्त गोशाला ने नवाँ गीतमार्ग और दसवाँ नृत्यमार्ग ( जो पूर्वो के अंग थे) दिसाचरों (घुमक्कड़) से सीखे । इनके आधार पर वह १ लाभ, २ अलाभ, ३ सुत्र, ४ दुःख, ५ जीवन और ६ मरण बता सकने में समर्थ था । जैन-शास्त्रों में 'पूर्व' अथवा 'पूर्वगत' का उल्लेख दृष्टिवाद-नामक १२-वें अंग में किया गया है। 'पूर्व' शब्द पर टीका करते हुए समवायांगसूत्र के टीकाकार ने लिखा है पूर्वगंत? उच्यते, यस्मा त्तीर्थकरः तीर्थ-प्रवर्तनाकाले गणधरानां सर्वसूत्र धारत्वेन पूर्वं पूर्वगतं सूत्रार्थ भाषते तस्मा १-तीर्थकर महावीर, भाग १, पृष्ठ १७१ २-ठाणगसूत्र सटीक, ठाणा ८, उ० सूत्र ६०८ पत्र ४२७-१ ३-भगवतीसूत्र सटीक, पत्र १२१० ४-पत्र १७१ ५-भगवतीसूत्र सटीक, श० १५, उ० १ सूत्र ५३६ पत्र १२०६-१२१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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