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________________ निमित्तों का अध्ययन १०३ बाराम ने लिखा है कि दिशाचरों ने पूर्वो से ८ निमित्त और २ मग्ग निकाले । गोशाला ने उन पर विचार किया और स्वीकार कर लिया । बाराम ने भगवती का जो यह अर्थ निकाला वह विकृत है । वस्तुतः तथ्य यह है कि गोशाला ने उन दिसाचरों से निमित्त आदि सीखे । अपने 'उवासगदसाओ' के परिशिष्ट में हार्नेल ने भगवतीसूत्र के १५ वें शतक का अनुवाद दिया है । उनके लिखे का तात्पर्य इस प्रकार है " ६ दिसाचर गोशाला के पास आये। उनसे गोशाला ने उनके सिद्धान्तों के सम्बन्ध में विचार-विमर्ष किया । गोशाला ने अपने निज के सिद्धान्तों में जो ८ महानिमित्तों से निकाले गये थे ( जो पूर्वों के एक अंश थे ) – उनसे उसने निम्नलिखित ६ सिद्धान्त स्वीकार किये । .255 हार्नेल का यह अनुवाद न भगवती से मेल खाता है और न चरित्रों से । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में कैसा उल्लेख है, यह हम प्रथम भाग में दे चुके हैं । नेमिचन्द्र और गुणचन्द्र ने भी अपने ग्रंथों में इसे स्पष्ट कर दिया है । तद्रूप ही उल्लेख आवश्यकचूर्णि, आवश्यक की हरिभद्रीय टीका तथा मलयगिरि की टीका में भी है । जो पार्श्व संतानी साधु दीक्षा छोड़ देते थे, वे प्रायः करके निमित्त से जीविकोपार्जन करते थे । ऐसे कितने ही उदाहरण जैन- शास्त्रों में मिलते १ - आजीवक, पृष्ठ २१३ २-उवासगदसाओ, परिशिष्ट, खंड ३- तीर्थंकर महावीर, भाग १, पृष्ठ २१८, ४ – नेमिचन्द्र-रचित 'महावीर चरियं', श्लोक ६३, पत्र ४६-१ ५ - गुणचन्द्र - रचित 'महावीर चरियं', प्रस्ताव ६, पत्र २६३-२ ६ - पूर्वार्द्ध, पत्र २६६ ७- पत्र २१५-२ ८- पत्र २८७-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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