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निमित्तों का अध्ययन
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बाराम ने लिखा है कि दिशाचरों ने पूर्वो से ८ निमित्त और २ मग्ग निकाले । गोशाला ने उन पर विचार किया और स्वीकार कर लिया । बाराम ने भगवती का जो यह अर्थ निकाला वह विकृत है । वस्तुतः तथ्य यह है कि गोशाला ने उन दिसाचरों से निमित्त आदि सीखे ।
अपने 'उवासगदसाओ' के परिशिष्ट में हार्नेल ने भगवतीसूत्र के १५ वें शतक का अनुवाद दिया है । उनके लिखे का तात्पर्य इस प्रकार है
" ६ दिसाचर गोशाला के पास आये। उनसे गोशाला ने उनके सिद्धान्तों के सम्बन्ध में विचार-विमर्ष किया । गोशाला ने अपने निज के सिद्धान्तों में जो ८ महानिमित्तों से निकाले गये थे ( जो पूर्वों के एक अंश थे ) – उनसे उसने निम्नलिखित ६ सिद्धान्त स्वीकार किये ।
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हार्नेल का यह अनुवाद न भगवती से मेल खाता है और न चरित्रों से । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में कैसा उल्लेख है, यह हम प्रथम भाग में दे चुके हैं । नेमिचन्द्र और गुणचन्द्र ने भी अपने ग्रंथों में इसे स्पष्ट कर दिया है । तद्रूप ही उल्लेख आवश्यकचूर्णि, आवश्यक की हरिभद्रीय टीका तथा मलयगिरि की टीका में भी है ।
जो पार्श्व संतानी साधु दीक्षा छोड़ देते थे, वे प्रायः करके निमित्त से जीविकोपार्जन करते थे । ऐसे कितने ही उदाहरण जैन- शास्त्रों में मिलते
१ - आजीवक, पृष्ठ २१३
२-उवासगदसाओ, परिशिष्ट, खंड
३- तीर्थंकर महावीर, भाग १, पृष्ठ २१८,
४ – नेमिचन्द्र-रचित 'महावीर चरियं', श्लोक ६३, पत्र ४६-१
५ - गुणचन्द्र - रचित 'महावीर चरियं', प्रस्ताव ६, पत्र २६३-२ ६ - पूर्वार्द्ध, पत्र २६६
७- पत्र २१५-२
८- पत्र २८७-१
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