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________________ १०२ तीर्थङ्कर महावीर __तेजोलेश्या किन परिस्थितियों में काम करती है, इसका उल्लेख सटीक ठाणांगसूत्र में सविस्तार है।' निमित्तों का अध्ययन तेजोलेश्या के लिए तप में सफलता प्राप्त होने के बाद गोशाला ने दिसाचारों से निमित्त सीखे । इसका भी वर्णन हम पहले कर चुके हैं। "दिशाचर' शब्द पर टीका करते हुए अभयदेव सूरि ने लिखा है "दिसाचर' त्ति दिशं मेरां चरन्ति-यान्ति मन्यते भगवतो वयं शिष्या इति दिकचराः। भगवच्छिष्याः पार्श्वस्थी भूता इति टीकाकारः 'पासावचिज' त्ति चूर्णिकारः। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इसका वर्णन अधिक स्पष्ट है । उपदेशमाला सटीक में स्पष्ट 'पासाऽवच्चिज्जा' लिखा है। १-ठाणांगसूत्र सटीक, ठाणा १०, उ० ३, सूत्र ७७६ पत्र ५२०-२ उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन ३४ [ नेमिचन्द की सटीक सहित ] पत्र ३६८-१-३७३-१ में भी लेश्याओं की सविस्तार वर्णन है। २-तीर्थकर महावीर, भाग १, पृष्ठ २१८ । ३-भगवतीसूत्र सटीक, श० १५, उ० १, सूत्र-५३६ पत्र १२१० । ४-श्री पार्श्व शिष्या अष्टांगनिमित्त ज्ञान पंडिताः, गोशालसस्य मिलिताः षडमी प्रोज्जितव्रताः ॥१३४॥ नाम्राः शोणः कलिन्दो ऽन्यः कर्णिकारोऽपरः पुनः । अच्छिद्रोऽथाग्निवेशामोऽथार्जुनः पञ्चमोत्तरः ॥१३॥ तेऽप्याख्युरष्टांग महानिमित्तं तस्य सौहृदात्....... . -त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ४, पत्र ४५-२ ५-उपदेशमाला दोघट्टी विशेष वृत्ति, पत्र ३२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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