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गोशाला-काण्ड गोशाला दूसरे वर्षावास में भगवान् से मिला और ६-वाँ वर्षावास भगवान् ने अनार्यभूमि में बिताया । इस प्रकार भगवान के साथ का उसका वह ७-वाँ वर्ष था—अर्थात् ६वर्ष पूरा हो चुका था और कुछ मास अधिक हो चुके थे। अनार्य भूमि से गोशाला भगवान के साथ लौटा और तेजोलेश्या को विधि जानने तक भगवान के साथ रहा । अतः यह बात निर्विवाद है कि वह भगवान के साथ ६ वर्ष से अधिक ही रहा ।
तेजोलेश्या जैन-ग्रंथों में लेश्या की परिभाषा बताते हुए लिखा हैलिश्यते प्राणी कर्मणा यया सा लेश्या'
लेश्याओं का सविस्तार वर्णन द्रव्यलोक प्रकाश में आता है। उसी स्थल पर उनके रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि का भी विस्तार से वर्णन है। ठाणांग सूत्र तथा समवयाांग सूत्र में ६ लेश्याएँ बतायी गयी हैं
१ कृष्णलेश्या, २ नोललेश्या, ३ कापोतलेश्या, ४ तेजोलेश्या, ५ पद्मलेश्या और ६ शुल्कलेश्या । . तेजोलेश्या को टीका करते हुए प्रवचनसारोद्धार के टीकाकार ने लिखा है
तत्र तेजोलेश्या लब्धि क्रोधाधिक्यात्प्रतिपन्थिनं प्रति मुखेनानेक योजन प्रमाणक्षेत्राश्रित वस्तु दहन दक्षतीव्रतर तेजो निसर्जन शक्तिः।
१-ठणांगसूत्र सटीक, ठा० १, सूत्र ५१ पत्र ३१-२
२-~-द्रव्यलोक-प्रकाश गुजराती अनुवाद सहित ( आगमोदय-समिति ) सर्ग ३, पृष्ठ ११२-१२६
३-ठाणांग सूत्र सटीक, उत्तरार्ध, ठा० ६, उ० ३, सूत्र ५०४ पत्र ३६१-२ ४-समवायांग सूत्र सटीक, समवाय ६, पत्र ११-१। ५---प्रवचनसारोद्धार सटीक, द्वार २७० पत्र ४३२-१ ।
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