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तीर्थङ्कर महावीर 'वियडासएणं' का संस्कृत टीकाकार ने 'विकटाश्रयो किया है—अर्थात् इन दो वस्तुओं का सहारा लेकर । 'कुम्मासपिंडियाए' के लिए टीकाकार ने लिखा है- 'अर्द्धस्विन्ना' अर्थात् आधा उबला हुआ। और, कितनी मात्रा में यह बताते हुए भगवान् ने कहा 'सनहाए' अर्थात् बँधी मुट्ठी के ऊपर जितना कुल्माष रखा जा सके, उतना मात्र खाकर ।
'आश्रय' की टीका टीकाकार ने 'स्थानं' किया है। 'ठाण' का अर्थ है-अंक का स्थान अर्थात् परिमाण | यह शब्द मर्यादाद्योतन के लिए प्रयुक्त हुआ है । इसे टीकाकार ने और स्पष्ट कर दिया है
प्रस्तावाच्चुलुकमाहुवृद्धा -अर्थात् एक चिल्लू मात्र पानी
डाक्टर बाशम ने गोशाल के तेजोलेश्या-प्रप्ति का समय मंख का व्यवसाय छोड़ने के लगभग ७ वर्ष बाद माना है।' इस गणना का मूल आधार यह है कि उन्होंने ६ वर्षों तक गोशाला का भगवान के साथ रहना माना है । कल्याणविजय जी ने भी अपनी पुस्तक 'भगवान् महावीर' में लिखा है-“लगभग ६ वर्षों तक साथ रहने के बाद वह उनसे पृथक हो गया । "ऐसा ही गोपालदास जीवाभाई पटेल ने 'महावीर-कथा' में लिखा है। कल्याणविजय और गोपालदास ने अपने ग्रन्थों में गोशाला का भगवान् की छद्मावस्थ के दूसरे वर्ष में भगवान के साथ आना और १०-वें वर्ष में पृथक होना लिखा है। ऐसा ही क्रम 'आवश्यकचूर्णि' में भी है। प्रथम भाग में हम इन सब का विस्तृत विवरण सप्रमाण दे चुके हैं । अतः हम उनकी यहाँ आवृत्ति नहीं करना चाहते ।
भगवती में ६ वर्ष का पाठ देखकर वस्तुतः लोग भ्रम में पड़ जाते हैं । और, स्वयं अपने पूर्व लिखे पर ध्यान न रखकर ६ वर्ष लिखकर भ्रम पैदा करते हैं।
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१--आजीवक, पष्ठ ५० २-पृष्ठ १२३ ३-पृष्ठ-३८०
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