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गोशाला - काण्ड
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और तप के फल की प्राप्ति तथा उसके प्रथम प्रयोग का भी उल्लेख हम प्रथक भाग में ही कर चुके हैं ( देखिये पृष्ठ २१८ ) । डाक्टर बाशम ने अपनी पुस्तक 'आजीवक' में ( पृष्ठ ५० ) लिखा है कि, गोशाला ने झील 'के तट पर तेजोलेश्या के लिए तप किया था और संदर्भरूप में भगवती का नाम दिया है। पर, झील का उल्लेख न तो भगवतीसूत्र ( शतक १५, सूत्र ५४४ ) में है, न आवश्यकचूर्णि (पूर्वार्द्ध, पत्र २९९ ) न आवश्यक मलयगिरि - टीका ( पत्र २८७ - १ ), न आवश्यक हरिभद्रीय टीका ( पत्र २१४ - २ ) न कल्पसूत्र ( सुबोधिका टीका सहित, पत्र ३०५ ) में और न चरित्र ग्रन्थों में ।
बाराम को सूत्र में आये 'वियडासएणं' शब्द से और उसकी टीका देखकर भ्रम हुआ । टीकाकार ने 'विटक' का अर्थ 'जल' किया है । पर, बाराम ने यह समझने की चेष्टा नहीं कि, इस 'विकट' का प्रयोग कैसे अर्थ में हुआ है । यह शब्द जैन-साहित्य में कितने स्थलों पर प्रयुक्त हुआ है । हम उनमें से कुछ उद्धरण सप्रमाण दे रहे हैं :
( १ ) शुद्ध विकटं - प्रासुकमुकदम् - आचारांग सटीक पत्र ३१५-२ (२) वियडेण - 'विकटेन' विगत जीवेनाप्युदकेन
— सूत्रकृतांग सटीक १, ९, १९ पत्र १८१ (३) शुद्ध विकटं - शुद्ध विकटम् - उष्णोदकं
- ठाणांगसूत्र सटीक ३, ३, १८२, पत्र १४८-२ ( ४ ) सुद्ध वियडे - उष्णोदकं
- कल्पसूत्र सुबोधिका टीका सहित, पत्र ५४८
तो इस जल से झील का अर्थ तो लग ही नहीं सकता । भगवान् ने जहाँ तेजोलेश्या प्राप्ति की विधि बतायी है, वहाँ उसे ' कुम्मासपिंडियाए' और 'विड' का आश्रय लेने को कहा है । यहाँ मूल शब्द 'आसणं' है ।
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