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खेमक आदि की दीक्षा इन्हीं दिनों भगवान् चम्पा-नगरी के पूर्णभद्र चैत्य में पधारे । उनके दर्शन के लिए नगर के लोग गये । राजपरिवार की महिलाएँ भी गयीं।
जब उपदेश समाप्त हुआ तो श्रेणिक की पत्नी ( कूणिक की विमाता ) काली रानी ने भगवान् से पूछा कि युद्ध में कालकुमार का क्या हुआ ? भगवान् ने उसकी मृत्यु की सूचना दी ।
उसी प्रकार निरन्तर प्रतिदिन १ सुकाली, २ महाकाली, ३ कृष्णा ४ सुकृष्णा, ५ महाकृष्णा, ६ वीरकृष्णा, ७ रामकृष्णा, ८ पितृसेनकृष्णा और ९ महासेनकृष्णा-नामक श्रेणिक की अन्य रानियाँ भी अपने पुत्रों का समाचार पूछती गयीं और भगवान् उनकी मृत्यु की सूचना देते गये। ___ भगवान ने उन राजमाताओं को उपदेश दिया और संसार की असारता बतायी । भगवान के उपदेश से प्रतिबोध पाकर काली आदि दसो रानियों ने भगवान से दीक्षा लेकर साध्वी-व्रत धारण कर लिया ।' ।
साध्वी-व्रत ग्रहण करने के बाद काली आदि ने सामायिक आदि तथा ११ अंगों का अध्ययन किया ।
एक दिन काली ने आर्यचन्दना से पूछा--"यदि आप आज्ञा दें तो मैं रत्नावलि-तपस्या करूँ। आर्यचंदना की अनुमति प्राप्त होने पर उन्होंने पहले रत्नावलि-तप किया । इस तपस्या में उन्हें कुल १ वर्ष ३ महीना २२ अहोरात्र लगे । इस एक परिपाटी में कुल ३८४ दिन तपस्या के और ८८ दिन पारणा के रहे।
प्रथम लड़ी पूरी करने के बाद उन्होंने ३ लड़ियाँ और पूरी की। इन चारों परिपाटियों में उन्हें ५ वर्ष ६ माह २८ दिन लगे।
इन विकट तपस्याओं से उनका शरीर मांस तथा रक्त से हीन हो गया । उठते-बैठते उनकी हड्डियों से कड़-कड़ की आवाज निकलती।
१-अंतगड ( एन० वी० वैद्य-सम्पादित ) पृष्ठ ३८
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