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________________ भगवान् पर कूणिक की निष्ठा प्रमाण ६३ उनके समाचार उस प्रवर्तिक बादुक पुरुष को कहते थे और वह प्रवर्तिक प्रवादुक पुरुष उन समाचारों को महाराज कोणिक को कहता था । इस कथन से ही स्पष्ट है कि, कूणिक भगवान् का कितना बड़ा भक्त था । श्रेणिक के पौत्रों की दीक्षा भगवान् ने कूणिक राजा और नगर निवासियों को जिससे प्रभावित होकर अनेक गृहस्थों ने अनगार-व्रत श्रेणिक के १० पौत्र पद्म, महापद्म, भद्र, सुभद्र, महाभद्र, पद्मसेन, पद्मगुल्म, नलिनीगुल्म, आनंद और नंदन ने भी साधु- व्रत स्वीकार किया । ' इनके अतिरिक्त जिनपालित' आदि अनेक समृद्ध नागरिकों ने निर्गथ श्रमण-धर्म अंगीकार किया तथा पालित आदि ने श्रावक-धर्म स्वीकार किया | :: Jain Education International १ - निरयावलिका ( कप्पवडिसियाओ ) ( डा० पी० एल० वैद्य - सम्पादित ) पृष्ठ ३१ । २- ज्ञाताधर्मकथा ( एन० वी० वैद्य-सम्पादित ) १-६ पृष्ठ १२२-१३२ । ३ - उत्तराध्ययन ( नेमिचंद्र की टीका सहित ) अध्ययन २१ पत्र २७३ - २२ श धर्मोपदेश दिया, अंगीकार किया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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