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२५.वाँ वर्षावास बेहास-अभय आदि की देवपद-प्राप्ति
इसी वर्ष भगवान के शिष्य बेहास-अभय आदि साधुओं ने राजगृह के पाश्र्ववर्ती विपुल पर्वत पर अनशन करके देवपद प्राप्त किया ।' भगवान् ने अपना वर्षावास भी राजगृह में बिताया ।
__भगवान् चम्पा में वर्षावास समाप्त होते ही भगवान् ने चम्पा की ओर विहार किया। श्रेणिक की मृत्यु के पश्चात् कृणिक ने अपनी राजधानी चम्पा में बना ली थी। इसका सविस्तार वर्णन हमने राजाओं के प्रसंग में किया है !
भगवान् चम्पा मैं पूण भद्र-चैत्य में ठहरे । राजा कूणिक बड़ी सजधज से भगवान का वंदन करने गया । कृणिक के भगवान् की वंदना करने जाने का बड़ा विस्तृत वर्णन औपपातिकसूत्र में आता है ।
भगवान पर कूणिक की निष्ठा का प्रमाण कूणिक के सम्बन्ध में औपपातिक में उल्लेख आता है
१–अणुत्तरोववाइयासूत्र (एन० वी० वैद्य, सम्पादित ) १, पृष्ठ ४८
२-औपपातिकसूत्र सटीक (सूत्र १, पत्र १-७ ) में चम्पा-नगर का बड़ा विस्तृत वर्णन आता है। जैनमृत्रों में जहाँ भी नगर का वर्णन मिलता है वहाँ प्रायः करके 'जहा चम्पा' का उल्लेख मिलता है।
३--औपपातिकसूत्र सटीक सूत्र २ पत्र ८-६ में चैत्य का बड़ा विस्तृत वर्णन है। चैत्य का एक मात्र यही वर्णक जैन-साहित्य में है । जहाँ भी 'चैत्य' शब्द के बाद
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