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तीर्थङ्कर महावीर भगवान्-" हे गौतम ! उसका फल तप है।" गौतम स्वामी--"उस तप का क्या फल है ? भगवान्-"उसका फल कर्म-रूप मैल साफ करना है।" गौतम स्वामी-"कर्म-रूप मैल साफ होने का क्या फल है ?" भगवान्---"उससे निष्क्रियपना प्राप्त होती है।" गौतम स्वामी-"उस निष्क्रियपन से क्या लाभ है ?"
भगवान्-"उसका फल सिद्धि है अर्थात् अक्रियपन प्राप्ति के पश्चात् सिद्धि प्राप्त होती है। कहा गया है
सवणे णाणे य विन्नाणे पच्चक्खाणे ‘य संजमे । अणराहये तवे चेव अकिरिया सिद्धि ॥
-(उपासना से ) श्रवण, श्रवण से ज्ञान, ज्ञान से विज्ञान, विज्ञान से प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान से संयम, संयम से अनाश्रय, अनाव से तप, तप, से कर्ननाश, कर्मनाश से निष्क्रियता और निष्क्रियता से सिद्धिअजरामरत्व प्राप्त होती है।'
१-भगवतीसूत्र सटीक, शतक २, उद्देशा ५, पत्र २३७-२४६
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