________________
पार्श्वत्यों का समर्थन
८६ इस पर भगवान् ने उत्तर दिया- "हे गौतम ! वे स्थविर उन श्रमणोपासकों को उत्तर देने में समर्थ हैं--असमर्थ नहीं हैं। उस प्रकार का उत्तर देने के लिए वे साधु अभ्यासवाले हैं, उपयोग वाले हैं तथा विशेष ज्ञानी हैं । उन्होंने सच बात कही । केवल अपनी बड़ाई के लिए नहीं कहा । मेरा भी यही मत है कि, पूर्व तप और संयम के कारण और कर्म के शेष रहने पर देवलोक में मनुष्य जन्म लेता है।"
फिर गौतम स्वामी ने पूछा-"उस प्रकार के श्रमण अथवा ब्राह्मण की पर्युपासना करने वाले मनुष्य को उनकी सेवा का क्या फल मिलता है ?"
भगवान्--" हे गौतम ! उनकी पर्युपासना का फल श्रवण है अर्थात् उनकी पर्युपासना करने से सत्शास्त्र सुनने को मिलते हैं ?”
गौतम स्वामी-"उस श्रवण का क्या फल है ?”
भगवान्-"उसका फल ज्ञान है अर्थात् सुनने से उनका ज्ञान होता है।"
गौतम स्वमी-"उस जानने का क्या फल है ?" भगवान्-"उस जानने का फल विज्ञान है ।” । गौतम स्वामी-“उस विज्ञान का क्या फल है ?" ।
भगवान्-“हे गौतम ! उसका फल प्रत्याख्यान है अर्थात विशेष जानने के बाद सब प्रकार की वृत्तियाँ अपने आप शांत पड़ जाती है।"
गौतम स्वमी-“हे भगवन् ! उस प्रत्याख्यान का क्या फल है ?'
भगवान्-“हे गौतम ! उसका फल संयम है अर्थात् प्रत्याख्यान प्राप्त होने के पश्चात् सर्वस्व त्याग रूप संयम होता है।"
गौतम स्वामी- "हे भगवान् ! उस संयम का क्या फल है ?"
भगवान्-"उसका फल आश्रवरहितपना है अर्थात् विशुद्ध संयम प्राप्त होने के पश्चात् पुण्य अथवा पाप का स्पर्श नहीं होता । आत्मा अपने मूल रूप में रमण करता है।"
गौतम स्वामी-"उस आश्रवरहितपने का क्या फल है ?"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org