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________________ ८८ तीर्थङ्कर महावीर पार्श्वपत्यों का समर्थन कौशाम्बी से विहार कर भगवान् राजगृह के गुणशिलक-चैत्य में पधारे । गौतम स्वामी भिक्षा के लिए नगर में गये तो उन्होंने बहुत-से आदमियों से सुना---'हे देवानुप्रिय ! तुंगिका-नगरी' के बाहर पुष्पवती-नामक चैत्य में पार्श्वनाथ भगवान् के शिष्य स्थविर आये हैं। उनसे श्रावकों ने इस प्रकार प्रश्न पूछे-'हे भगवन् ! संयम का क्या फल है ? हे भगवन् ! तप का क्या फल है ?' इसका उन्होंने उत्तर दिया--'संयम का फल आश्रवरहित होना है और तप का फल कर्म का नाश है।' __ "इसे सुनकर गृहस्थों ने पूछा-'हम लोगों ने सुना है कि संयम से देवलोक की प्राप्ति होती है और लोग देव होते हैं ? यह क्या बात है ? "साधुओं ने इसका उत्तर दिया-'सराग अवस्था में आचारित तप से और सराग अवस्था में पाले गये संयम से मनुष्य जब मृत्यु से पहिले कर्मों का नाश नहीं कर पाता तो बाह्य संयम होने के कारण और अन्तर की बची आसक्ति के कारण मुक्ति के बदले देवत्व प्राप्त होता है।" गौतम स्वामी को यह वार्ता सुनकर बड़ा कुतूहल हुआ और भिक्षा लेकर जब वे लौटे तो उन्होंने भगवान् से पूछा--"भगवान् पार्श्वपत्य साधुओं का दिया उत्तर क्या सत्य है ? क्या वे इस प्रकार उत्तर देने में समर्थ हैं ? क्या वे विपरीत ज्ञान से मुक्त हैं ? क्या वे अच्छे प्रकृति वाले हैं ? क्या वे अभ्यासी हैं और विशेष ज्ञानी हैं ?" १-यह तुंगिका नगरी राजगृह के निकट थी। प्राचीन तीर्थमाला, भाग १, पृष्ठ १६ ( भूमिका ) में इसकी पहचान बिहार-शरीफ से की गयी है। बिहार शरीफ से ४ मील की दूरी पर तुंगी-नामक गाँव है, उसे तुंगिका मानना अधिक उपयुक्त ज्ञात होता है ( देखिये सर्वे आव इण्डिया का नकशा संख्या ७२ G १ इंच =४ मील ) इसके अतिरिक्त एक और तुंगिका थी। वह वत्स-देश में थी। महावीर स्वामी के गणधर मेतार्य यहाँ के रहने वाले थे ( आवश्य कनियुक्ति-दीपिका, भाग १, गा० ६४६ पत्र १२२-१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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