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________________ २४-वाँ वर्षावास जमालि का पृथक होना वर्षाकाल समाप्त होने के बाद भगवान् ने विहार किया और ब्राह्मणकुंडके बहुशाल- चैत्य में पधारे । यहाँ जमालि की इच्छा अपने ५०० शिष्यों को लेकर पृथक होने की हुई । उसने भगवान् के सम्मुख जाकर उनका वंदन किया और पूछा - "भगवन् ! आपकी आज्ञा से मैं अपने परिवारसहित पृथक विहार करना चाहता हूँ ।" भगवान् ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया । जमाल ने दूसरी और तीसरी बार भी इसी प्रकार अनुमति माँगी, पर भगवान् दूसरी और तीसरी बार भी मौन रहे । उसके बाद भगवान् को नमन करके और उनकी वंदना करके जमालि बहुशाल- चैत्य से निकल कर अपने परिवार सहित स्वतंत्र विहार करने लगा । चन्द्र-सूर्य की वन्दना वहाँ से भगवान् ने वत्स देश की ओर विहार किया और कौशाम्बी पधारे । यहाँ सूर्य और चन्द्र अपने मूल विमानों के साथ आपकी वंदना करने आये । इसे जैनशास्त्रों में आश्चर्य कहा गया है । १- भगवतीसूत्र सटीक, शतक ६, उद्देशा ६, सूत्र ३८६ पत्र ८८६ २- त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ८, श्लोक ३३७-३५३ पत्र ११०-२ तथा १११-१ ३--- ठाणांगसूत्र सटीक, ठाणा १०, उ०३, सूत्र ७७७ पत्र ५२३-२; कल्पसूत्र सुबोधिका टीका पत्र ६७, प्रवचनसारोद्धार सटीक गाथा ८८५ पत्र २५६०१ २५८-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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