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________________ ८६ तीर्थङ्कर महावीर स्कंदक-"भक्त-प्रत्याख्यान क्या है ? भगवान्-'भक्तप्रत्याख्यान-मरण दो प्रकार का है--(१) निर्हारिम और (२) अनिभरिम । इन दोनों प्रकारों का भक्तप्रत्याख्यान मरण प्रीति कर्मवाला है। "हे स्कन्दक ! इन प्रकारों से जो मरते हैं वह नैरयिक नहीं होते और न अनन्त भवों को प्राप्त होते हैं । ये दोघं संसार को कम करते हैं।" . इसके पश्चात् स्कंदक ने भगवान् महावीर के वचन पर अपनी आस्था प्रकट की और प्रबजित होने की इच्छा प्रकट की। भगवान् ने स्कंदक को प्रजित कर लिया और तत्सम्बन्धी शिक्षा और समाचारी से परिचय कराया। भगवान् की सेवा में रहते स्कंदक ने एकादशांगी का अध्ययन किया । १२ वर्षों तक साधु-धर्म पालकर स्कंदक ने भिक्षु-प्रतिमा और गुणरत्न-संवत्सर' आदि विविध तप किये और अंत में विपुलाचल पर जाकर समाधि पूर्वक अनशन करके देह छोड़ अच्युतकल्प नामक स्वर्ग में उसने देवपद प्राप्त किया। नंदिनीपिता का श्रावक होना छत्रपलाशक-चैत्य से विहार कर भगवान् श्रावस्ती के कोष्ठक-चैत्य में घधारे । उनकी इसी यात्रा में गाथापति नन्दिनी-पिता आदि ने गृहस्थधर्म स्वीकार किया। उसकी चर्चा हमने मुख्य श्रावकों के प्रसंग में सविस्तार की है। श्रावस्ती से भगवान् वाणिज्यग्राम आये और अपना वर्षावास भगवान् ने वहीं बिताया। १-इन व्रतों का उल्लेख भगवतीसूत्र में विस्तार से आया हैं । २-भगवतीसूत्र सटीक, शतक २, उद्देशा १ पत्र १६७-२२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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