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________________ स्कंदक की प्रव्रज्या ८५ स्कंदक--"बालमरण क्या है ?" भगवान्-"बालमरण के १२ भेद हैं।" (१) बलन-मरण-तड़पता हुआ मरना । (२) वसट्ट-मरण-पराधीनता पूर्वक मरना । (३) अंतःशल्य-मरण-शरीर में शस्त्रादि जाने से अथवा सन्मार्ग से पथभ्रष्ट होकर मरना । (४) तद्भव-मरण—जिस गति में मरे फिर उसी में आयुष्य बाँधना। (५) पहाड़ से गिर कर मरना । (६) पेड़ से गिर कर मरना । (७) पानी में डूबकर मरना । (८) आग में जल कर मरना । (९) विष खा कर मरना । (१०) शस्त्र प्रयोग से मरना । (११) फाँसी लगाकर मरना । (१२) गृद्ध आदि पक्षियों से नुचवा कर मरना । "हे रूंदक ! इन १२ प्रकारों से मरकर जीव अनन्त बार नैरयिक भव को प्राप्त होता है। वह तिर्यक्-गति का अधिकारी होता है और चतुर्गत्यात्मक संसार को बढ़ाता है। मरण से बढ़ना इसी को कहते हैं । स्कंदक-"पंडित मरण क्या है ?" भगवान्-"पंडित मरण दो प्रकार का है(१) पादपोपगमन (२) भक्तप्रत्याख्यान ।" कंदक-“पारपोपगमन क्या है ?” भगवान्–“पादपोपगमन दो प्रकार का है—(१) निर्हारिमजिस प्रकार मृतक का शव अंतिम संस्कार में ले जाते हैं, उस प्रकार मरना निभरिम-पादपोपगमन है और उसका उलटा अनिर्हारिम पादपोपगमन है । इन दोनों प्रकारों का पादपोपगमन मरण प्रतिकर्म बिना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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