SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकर महावीर उधर भगवान् ने गौतम स्वामी से कहा - " हे गौतम ! आज तुम अपने एक पूर्वपरिचित को देखोगे ।" ८२ भगवान् की बात सुनकर गौतम स्वामी ने पूछा - " मैं किस पूर्व परिचित से मिलूँगा ?" भगवान् - " कात्यायन स्कंदक परिवाजक से !" गौतम - " कैसे ? यह स्कंदक परिव्राजक कैसे मिलेगा ? ” भगवान् — “ श्रावस्ती में पिंगल नामक निर्गथ ने स्कंदक से कुछ प्रश्न पूछे । पर, वह उनका उत्तर नहीं दे सका । फिर वह आश्रम में गया और कुंडी आदि लेकर गेरुआ वस्त्र पहन कर यहाँ आने के लिए अब वह प्रस्थान कर चुका है । थोड़े ही समय बाद वह यहाँ आ पहुँचेगा । ” गौतम -- "क्या उसमें अपका शिष्य होने की योग्यता है ?" भगवान् — "स्कंदक में शिष्य होने की योग्यता है और वह निश्चय ही मेरा शिष्य हो जायेगा ।' इतने में स्कंदक दृष्टिगोचर हुआ । उसे देखकर गौतम स्वामी उसके पास गये और उन्होंने पूछा - "हे मागध ! क्या यह सच है कि, पिंगलनिर्गंध ने आपसे कुछ प्रश्न पूछे ? और क्या आप उसका उत्तर न दे सके ? इसीलिए क्या आपका यहाँ आना हुआ ?" गौतम स्वामी के इन प्रश्नों को सुनकर स्कंदक बड़ा चकित हुआ और उसने पूछा - " हे गौतम! ऐसा कौन ज्ञानी तथा तपस्वी है जिसने हमारी गुप्त बात इतनी जल्दी बता दी ?" गौतम - "हे स्कंदक ! हमारे धर्मगुरु, धर्मोपदेशक श्रमण भगवंत महावीर ज्ञान तथा दर्शन को धारण करनेवाले हैं । वे अर्हत् हैं, जिन हैं, केवली हैं, भूत वर्तमान भविष्य के जानने वाले हैं । वह सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं । उनको तुम्हारी बात ज्ञात हो गयी । " फिर, स्कंदक ने भगवान् की वंदना करने का विचार गौतम स्वामी से प्रकट किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy