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________________ तीर्थंकर महावीर भगवान् — " आकाश के ऊपर हवा, हवा के ऊपर पानी आदि इसी क्रम से रहते हैं । हे गौतम ! कोई आदमी मशक को हवा से भर कर उसे अपनी कमर में बाँधे हुए अथाह जल को अवगाहन करे तो वह ऊपर ठहरेगा या नहीं ?” गौतम -“हाँ भगवन् ! ठहरेगा ।" उद भगवान् - " इसी प्रकार लोक की स्थिति ८ प्रकार की है से लेकर जीव के कर्म-सम्बन्ध तक सम्पूर्ण बात समझ लेनी चाहिए । गौतम - " हे भगवन् ! जीव और पुद्गल क्या परस्पर सम्बद्ध ? परस्पर सटे हुए है ? परस्पर एक दूसरे से मिल गये हैं ? परस्पर स्नेहप्रतिबद्ध हैं और मिले हुए रहते हैं ?" भगवान् - "हाँ गौतम | गौतम - "हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?" भगवान् - "जैसे कोई पानी का हद हो, वह पानी से भरा हो, पानी से छलछला रहा हो, पानी छलछला रहा हो, ऐसा हो जैसे घड़े में पूरा-पूरा पानी भरा हो और उस हद में कोई छिद्र वाली डोंगी लेकर प्रवेश करे । छिद्र से आये जल के कारण नाव भरे घड़े के समान नीचे बैठेगी न ? गौतम -“हाँ भगवन् बैठेगी ।" भगवान् - " गौतम ! जीव और पुद्गल ऐसे ही परस्पर बँधे हुए हैंमिले हुए हैं।" गौतम - “हे भगवन् ! सूक्ष्म स्नेहकार्य ( अप्काय ) क्या सदा मापपूर्वक पड़ता है ? १ - द्रहोऽगाध जलो हदः - अभिधानचिंतामणि सटीक, भूमिकांड, श्लोक १५८, पृष्ठ ४३७ २ - अप्काय विशेष - भगवती सूत्र सटीक पत्र १४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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