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________________ ७६ तीर्थंकर महावीर संसार असिद्धसंसार तथा सिद्ध और सांसारिक प्राणी के विषय में भी जानना चाहिए । << रोह- 'हे भगवन् ! पहले अंडा है फिर मुर्गी या पहले मुर्गी है पीछे अंडा ?" भगवान् - "वह अंडा कहाँ से उत्पन्न हुआ ?" रोह - " वह मुर्गी से उत्पन्न हुआ । भगवान् — "वह मुर्गी कहाँ से उत्पन्न हुई ?" रोह - वह मुर्गी अण्डे से ऊत्पन्न हुई । भगवान्—“इसलिए अंडा और मुर्गी में कौन आगे है, कौन पीछे यह नहीं कहा जा सकता । इन में शाश्वत-भाव है । इनमें पहले पीछे का कोई क्रम नहीं है । दोह- हे भगवन् ! पहले लोकान्त है, पीछे. अलोकान्त अथवा पहले अलोकान्त है पीछे लोकान्त ? भगवान् – “लोकान्त - अलोकान्त में पहले पीछे का कोई क्रम नहीं है । रोह - "पहले लोक पीछे सतम अवकाशान्तर या पहले सतम अवकाशान्तर और पीछे लोक ? भगवान् - "लोक और सनम अवकाशान्तर इनमें दोनों पहले हैं । हे रोह ! इन दोनों में किसी प्रकार का क्रम नहीं है । लोकान्त, सातवाँ तनुवात, धनत्रात, धनोदधि और पृथ्वी - इस प्रकार एक-एक के साथ लोकान्त और नीचे लिखे के विषय में भी प्रमाण जोड़ लेना चाहिए : अवकाशान्तर, वात, धनोदधि, पृथ्वी, द्वीप, सागर, वर्ष-क्षेत्र, नैरथि - कारिक जीव, अस्तिकाय, समय, कर्म, लेश्या, दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, संख्या, शरीर, योग, उपभोग, द्रव्य-प्रदेश और पर्यव तथा काल पहले हैं या लोकान्त । रोह - "हे भगवन् ! पहले लोकान्त है और पीछे सर्वाद्धा ( अतीत आदि सब समय ) है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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