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२२-वाँ वर्षावास महाशतक का श्रावक होना
वर्षाकाल बीतने पर भगवान् ने मगध-भूमि की ओर विहार किया और राजगृह पहुँचे । भगवान् के उपदेश से प्रभावित होकर महाशतक गाथापति ने श्रमणोपासक धर्म स्वीकार किया। उसका विस्तृत वर्णन. हमने मुख्य श्रावकों के प्रकरण में प्रकरण में किया है ।
पार्श्वपत्यों का शंका-समाधान इसी अवसर पर बहुत-से पार्श्वपत्य (पार्श्व-संतानीय) स्थविर भगवान् के समवसरण में आये । दूर खड़े होकर उन्होंने भगवान् से पूछा--"हे भगवन् ! असंख्य जगत में अनन्त दिन-रात्रि उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं
और उत्पन्न होंगे ? नष्ट हुए हैं, नष्ट होते हैं और नष्ट होगे ? अथवा नियत परिणाम वाले रात्रि-दिवस उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं अथवा उत्पन्न होंगे ? और नष्ट हुए हैं, नष्ट होते हैं अथवा नष्ट होंगे?
इस पर भगवान् ने कहा--"हाँ, असंख्य लोक में अनन्त दिन-रात उत्पन्न हुए हैं, होते हैं और होंगे।"
पार्श्वपत्य—"हे भगवान् ! वे किस कारण उत्पन्न हुए हैं, होते हैं और होंगे?"
भगवान्" हे आय ! पुरुषादानीय पार्श्व ने कहा है कि, लोक. शाश्वत अनादि है और अनन्त है । वह अनादि, अनन्त, परिमित, आलोकाकाश से परिवृत्त, नीचे विस्तीर्ण, बीच में सँकड़ा, ऊपर विशाल; नीचे पल्यंक के आकार वाला, बीच में उत्तम वज्र के आकार वाला और ऊपरी
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