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________________ धन्य का प्रव्रज्या गया । भगवान् का उपदेश सुनकर धन्य बड़ा सन्तुष्ट हुआ और उसने भगवान् से साधु-धर्म ग्रहण करने की अनुमति मागी। समवसरण के बाद जमालि के समान अपने माता-पिता से अनुमति माँगने वह घर लौटा । महब्बल की कथा के अनुरूप ही उसकी वार्ता हुई । राजा ने भी उसे समझाने की चेष्टा की। राजा से उसकी वार्ता थावच्या-पुत्र के समान हुई। धन्य की वार्ता से प्रभावित होकर जितशत्रु ने उसी प्रकार घोषणा करायी, जैसी थावच्चा-पुत्र के प्रसंग में आती है "जो लोग मृत्यु के नाश की इच्छा रखते हों और इस हेतु विषयकषाय त्याग करने को उद्यत हो परन्तु केवल मित्र, जाति तथा सम्बन्धियों को इच्छा से रुके हों, वे प्रसन्नतापूर्वक दीक्षा ले लें। उनके सम्बन्धियों के योग-क्षेम की देख-रेख बाद में मैं अपने ऊपर लेता हूँ।” १-इस घोषणा का मूल पाठ ज्ञाताधर्मकथा सटीक श्रु० १, अ० ८ पत्र १०६. १ में इस प्रकार है "एवं खलु देवा. थावच्चापुत्ते संसार भउबिग्गे भीए जम्मणमरणाणं इच्छति अरहतो अरिट्टनेमिस्स अन्तिए मुण्डे भवित्ता पव्वइतए, तं जो खलु देवाणुप्पिया ! राया वा, जुवराया वा, देवी वा, कुमारे वा, ईसरे वा तलवरे वा, कोडुम्बिय०, माडंबिय० इब्भसेठिसेणावइ सत्थवाहे वा थावच्चापुत्तं पन्वायतमणुपव्वयति तस्स णं कण्हे वासुदेवे अणुजाणाति पच्छा तुरस्तविय से मित्त नाति नियग संबंधि परिजणस्स जोगखेम वहमा पडिवहति त्ति कट्ट घोसणं घोसेह जाव घोसन्ति...... __'योगक्षेम' की टीका ज्ञाताधर्मकथा में इस प्रकार दी हुई है"तत्रालब्धस्येष्पितस्य वस्तुनो लाभो योगो लब्धस्य परिपालन क्षेमस्ताभ्यां वर्तमानकालभवा वार्तमानी वार्ता योगक्षेमवार्तमानी"पत्र ११०-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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