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________________ तीर्थङ्कर महावीर उसके बाद बड़े धूमधाम से धन्य ने दीक्षा लेली । दीक्षा के बाद वह संयम पालन करते हुए तप कर्म करने लगा और भगवान् के स्थविरों के पास रहकर उसने सामायिक आदि और ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । So एक दिन उसने भगवान् से कहा - भगवान् मुझे यावज्जीवन छठछठ उपवास करने और छठ व्रत के अंत में आयम्बिल' करने की अनुमति दीजिए । उस समय भी संसट्र' अन्न ही मुझे स्वीकार होगा । भगवान् की अनुमति मिल जाने पर धन्य ने छट-छठ की तपस्या प्रारम्भ की । विकट तपस्या से सूखकर धन्य हड्डी- हड्डी रह गये । भगवान् एक बार जब राजगृह पधारे तो श्रेणिक राजा उनकी वन्दना करने गया । समवसरण समाप्त होने के बाद श्रेणिक ने भगवान् से कहा"भंते, क्या ऐसा है कि गौतम इन्द्रभूति सहित आपके १४ हजार साधुओं में धन्य अनगार महादुष्कर कार्य के कर्ता और ( महानिर्जरा ) कर्म - पुद्गलों को आत्मा से पृथक करते हैं । " भगवान् बोले - " मेरे साधुओं में धन्य सब से अधिक दुष्कर कर्म करने वाले हैं। " श्रेणिक फिर धन्य के पास गया । उसने धन्य की वन्दना की । उसके बाद धन्य ने विपुल पर्वत पर मरणांतिक संलेखना स्वीकार करके एक मास का उपवास करके देहत्याग किया और स्वर्ग गये । धन्य का साधु - जीवन कुल ९ मास का रहा । - इस प्रसंग के अन्त में दी गयी टिप्पणि देखें । ( देखिये पृष्ठ ७२ ) २ - इस प्रसंग के अन्त में दी गयी टिप्पणि देखें । ( देखिये पृष्ठ ७३ ) ३–धन्य का नख-शिख वर्णन अणुत्तरोववाइयसूत्र ( मोदी - सम्पादित ) पृष्ट ७४-७८ में विस्तार से दिया है । ४ - वही, वर्ग ३, पृष्ठ ७१ - Jain Education International ८२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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