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२०- वाँ वर्षावास भगवान् आलभिया में
वर्षावास समाप्त होने के बाद भगवान् ने राजगृह से कौशाम्बी की की ओर विहार किया ।
रास्ते में आलभिया - नामक नगरी पड़ी । उस आलभिया में अनेक श्रमणोपासक रहते थे । उनमें मुख्य ऋषिभद्रपुत्र था । एक समय श्रमणोपासकों में इस प्रसंग पर वार्ता चल रही थी कि, देवलोक में देवताओं की स्थिति कितने काल की कही गयी है । इस पर ऋषिभद्रपुत्र ने उत्तर दिया—“देवलोक में देवताओं की स्थिति कम-से-कम १० हजार वर्ष और अधिक-से-अधिक ३३ सागरोपम बतायी गयी है । इससे अधिक काल तक देवता की स्थिति देवलोक में नहीं रह सकती ।" परन्तु श्रावकों को उसके कथन पर विश्वास नहीं हुआ ।
जब भगवान् विहार करते, इस बार आलभिया आये तो श्रावकों ने उनसे पूछा । भगवान् ने भी ऋषिभद्रपुत्र की बात का समर्थन किया । भगवान् द्वारा पुष्टि हो जाने पर श्रावकों ने ऋषिभद्र पुत्र से क्षमायाचना की ।
वह ऋषिभद्रपुत्र बहुत वर्षों तक शीलव्रत का पालन करके, बहुत वर्षों तक साधु-धर्म पाल कर ६० टंक का उपवास कर मृत्यु को प्राप्त करने के बाद सौधर्मकल्प में अरुणाभ - नामक विमान में देवता - रूप में उत्पन्न हुआ ।
१ -- भगवती सूत्र सटीक, शतक १२, उद्दे शा १२ सूत्र ४३३ - ४३५ पत्र १००९१०११ ।
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