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________________ श्रा ककुमार का पूर्व प्रसंग धनश्री से विवाह करके आर्द्रककुमार बड़े सुख से जीवन व्यतीत करने लगे । कुछ काल बाद धनश्री को पुत्र हुआ। जब वह पुत्र ५ वर्ष का हो गया तो आर्द्रककुमार ने उ.पनी पत्नी से साधु होने की अनुमति माँगी। यह सुनकर उसकी पत्नी चरखा लेकर सूत कातने लगी। माँ को साधारण नारी की भाँति सूत कातते देखकर उसके पुत्र ने पूछा-"माँ सूत क्यों कात रही हो ?" माँ ने कहा- "तुम्हारे पिता साधु होनेवाले हैं। फिर तो सूत कातना ही पड़ेगा।” यह सुनकर पुत्र ने तकुए से सूत लेकर धागे से अपने पिता के पाँव बाँध दिये और बोला-"अब कैसे जायेंगे, मैंने उनके पैर बाँध दिये हैं।” आर्द्रककुमार ने कहा—"जितनी बार सूत लपेटा गया है, उतने वर्ष मैं गृहस्थावास में और रहूँगा।” आर्द्रककुमार ने गिना सूत १२ बार लपेटा गया था। अतः, उसने १२ वर्षी तक गृहस्थावास में और रहना स्वीकार कर लिया। बारह वर्ष बीतने पर आर्द्रककुमार ने अपनी पत्नी की आज्ञा लेकर व्रत अंगीकार करके राजगृह की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में एक घोर जंगल पड़ा। उस जंगल में वे ५०० सामंत भी रहते थे, जो आर्द्रककुमार की रक्षा के लिए नियुक्त किये गये थे। आर्द्रककुमार के भाग जाने के पश्चात् वे डर के मारे आर्द्रकपुर न लौट कर यहाँ भाग आये थे और चोरी करके जीवन-निर्वाह करते थे। आर्द्र ककुमार ने उन्हें प्रति बोधित किया और वे सब भी आईक कुमार के साथ चल पड़े। ___आई ककुमार की इसी यात्रा में गोशालक आदि उसे मिले थे, जिसका उल्लेख पहले किया जा चुका है।' १-आर्द्रककुमार का चरित्र सूत्रकृतांग-नियुक्ति-टीका-सहित (गौड़ी जी, बम्बई ), श्र० २, अ० ६, पत्र १३५-१ से १५८-१, ऋषिमंडलप्रकरण सटीक पत्र ११४-१-११७-२, भरतेश्वर-बाहुबलि-वृत्ति-सटीक, भाग २, पत्र २०४-२-२११-२, पर्युषणाऽष्टाहिका व्याख्यान (यशोविजय-ग्रन्थमाला) पत्र ५-२-६-२ आदि ग्रन्थों में आता है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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