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आर्द्रककुमार का पूर्व प्रसंग
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जातिस्मरण ज्ञान हो गया और वह विचार करने लगा-"अहो ! मैं व्रत भंग होने के कारण अनार्य- देश में पैदा हुआ । अरिहंत की प्रतिमा भेजकर अभयकुमार ने मेरे ऊपर बड़ा उपकार किया । "
अब अभयकुमार से मिलने की उसे बड़ी तीव्र उत्कंठा जागी । राजगृह जाने के लिए उसने अपने पिता से अनुमति माँगी । उसके पिता ने उत्तर दिया- "हमारे राज्य के शत्रु पग-पग पर हैं । अतः तुम्हारी इतनी लम्बी यात्रा उचित नहीं है ।" पिता की बात से आर्द्रककुमार बड़ा दुःखी हुआ ।
आर्द्रककुमार के पिता ने आर्द्रककुमार की रक्षा के लिए ५०० सामन्त नियुक्त कर दिये ।
आर्द्रककुमार उन ५०० सामन्तों के साथ नगर के बाहर घोड़े पर नित्य जाया करता । अभयकुमार से मिलने को अति उत्सुक आर्द्रककुमार घोड़े पर घूमने के समय नित्य अपनी दूरी बढ़ाया करता । इस प्रकार अवसर पाकर आर्द्रककुमार वहाँ से भाग निकला। समुद्र यात्रा के बाद वह लक्ष्मीपुर नामक नगर में पहुँचा । वहाँ पहुँच कर आर्द्रककुमार ने पाँच मुष्टि लोच किया ।
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उस समय शासन- देवी ने कहा - " हे आर्द्रककुमार ! अभी तुम्हारे भोग - कर्म शेष हैं । तुम अभी व्रत मत स्वीकार करो । आर्द्रककुमार अपने विचार पर दृढ़ रहा और साधु-वेश में राजगृह की ओर चला । रास्ते में बसन्तपुर पड़ा । आर्द्रककुमार उस नगर के बाहर एक मंदिर में कायोत्सर्ग में खड़ा हो गया ।
उस समय वहाँ की श्रेष्ठिपुत्री धनश्री जो पूर्वभव में आर्द्रककुमार की पत्नी थी अपनी सखियों के साथ खेल रही थी । अंधकार में वे मंदिरके स्तम्भ पकड़तीं और कहतीं — "यह मेरा पति है ।" अंधकार में धनश्री को
१- भरतेश्वर बाहुबलि-वृत्ति सटीक, भाग २, पत्र २०७ - १
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