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तीर्थकर महावीर कुमार हैं।" पूर्वजन्म के अनुराग के कारण अभयकुमार का नाम सुनकर आर्द्रककुमार को बड़ा आनन्द आया ।
आर्द्रककुमार ने उनसे कहा-"जब आप लोग अपने नगर वापस जाने लगे तो अभयकुमार के लिए मेरी भेंट तथा मेरा पत्र लेते जाइयेगा।"
जब वे वापस लौटने लगे तो आर्द्रककुमार ने उनके द्वारा अपनी भेट भेजी, राजगृह पहुँचकर दूतों ने अभयकुमार को आर्द्रककुमार का पत्र और भेंट दिये। अभयकुमार ने पहले भेंट देखी । भेंट में मुक्तादि देखकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई । फिर, उसने पत्र पढ़ा। पत्र पढ़कर अभयकुमार को लगा-- "निश्चय ही पत्र भेजने वाला कोई आसन्नसिद्धि वाला व्यक्ति है कारण कि, बहुल-कर्मी जीव तो मेरे साथ मैत्री करने से रहा । लगता है कि, पूर्व जन्म में इसने व्रत की विराधना की है । इस कारण अनार्य-देश में इसने जन्म लिया है ।" ऐसा विचार करके अभयकुमार यह विचार करने लगा कि किस प्रकार आर्द्रककुमार को प्रतिबोध हो ।
ऐसा विचार कर अभयकुमार ने भगवान् आदिनाथ की सोने की प्रतिमा तैयार करायी और धूपदानी घंटा आदि अनेक उपकरणों के साथ उसे एक पेटी में रख कर आर्द्रककुमार से पास भेजा और कहलाया कि इस पेटी को एकांत में खोल कर देखें।
राजदूत उस भेंट को लेकर आर्द्रककुमार के पास गये और अभयकुमार की भेंट उसे दी। आर्द्रककुमार भेंट पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ । आर्द्रककुमार ने अन्न-वस्त्र आभूषणादि से सत्कार करने के पश्चात् दूतों को विदा किया।
एकान्त में आर्द्रककुमार ने जब पेटी खोली तो पूजा-सामग्री युक्त आदिनाथ की प्रतिभा देखकर उसके मन में जो उहापोह हुआ, उससे उसे
३-आर्द्रककुमार के पूर्वभव की कथा सूत्रकृतांग आदि ग्रंथों में आती है। अपने पूर्वभव में वह बसंतपुर (मगध ) में था। देखिये सूत्रकृतांग-नियुक्ति-टीका सहित, भाग २ पत्र १३७-२
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