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बनैले हाथी का शमनं श्रेणिक ने इसका कारण पूछा तो आद्रक कुमार ने तत्सम्बन्धी पूरी कथा कड् मुनायी।
- उसके बाद आद्रकमुनि भगवान् महावीर के पास गये और उन्होंने भक्ति पूर्वक उनका वंदन किया। भगवान् के आर्द्रक मुनि द्वारा प्रतिबोधित राजपुत्रों और तापसादि को प्रव्रज्या देकर उन्हीं के सुपुर्द किया । अपना वह वर्षावास भगवान् ने राजगृह में बिताया।
आर्द्रककुमार का पूर्व प्रसंग समुद्र के मध्य में अनाय देश में, आईक-नाम का एक देश था। उसी नामकी उसकी राजधानी थी । उस देश में आर्द्रक नामक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम आर्द्रका था। और, उसके पुत्र का नाम आर्द्रककुमार था।
अनुक्रम से आद्रककुमार युवा हुआ। एक बार श्रेणिक राजा ने पूर्व परम्परा के अनुसार आर्द्र क राजा को भेंट भेजी। उस समय आर्द्रककुमार अपने पिता के पास बैटा था । श्रेणिक की भेंट देखकर आर्द्रककुमार विचार करने लगा--"यह श्रेणिक राजा एक बड़े राज्य का मालिक है। यह मेरे पिता का मित्र है । यदि उसे कोई पुत्र हो तो मैं उसके साथ मैत्री करूँ।" उसने भेंट लाने वाले राजदूतों की महल में बुलवाकर पूछा-- "श्रेणिक राजा को क्या कोई ऐसा सद्गुणी पुत्र है, जिसके साथ मैं मैत्री कर सकूँ ?" आर्द्रककुमार की बात सुन कर वे बोले- "श्रेणिक राजा को बहुत से महाबलवंत पुत्र हैं । उनमें सबसे गुणवान् और श्रेष्ठ अभय
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१-तत्सम्बंधी पूरी कथा 'आर्द्रककुमार के पूर्व प्रसंग' में दी हुई है।
२- सूत्रकृतांगनियुक्ति; टीका-सहित, श्रू० २, अ२ ६, पत्र १३६-१ त्रिाष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ७, श्लोक १७७-१७६ पत्र ६२-२, पर्दूषणाऽष्टाहिका व्याख्यान, श्लोक ५, पत्र ६-१
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