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तीर्थङ्कर महावीर
पहुचाते हैं । सम्पूर्ण ज्ञान - लोक का स्वरूप समझ कर और पूर्ण ज्ञान से समाधि युक्त होकर जो सम्पूर्ण धर्म का उपदेश देते हैं, वे स्वयं तरते हैं और दूसरों को भी तारते हैं ।
" हे आयुष्मन् ! इस प्रकार तिरस्कार करके योग्य ज्ञान वाले वेदान्तियों को और सम्पूर्ण ज्ञान, दर्शन तथा चरित्र से सम्पन्न जिनों को अपनी समझ से - समान कह कर, तुम स्वयं अपनी ही विपरीतता प्रकट कर रहे हो ।
आर्द्रककुमार और हस्तितापस
उसके बाद उसे हस्तितापस मिला । हस्तितापस ने कहा- - "एक वर्ष में एक महाराज को मार कर शेत्र जीवों पर अनुकम्पा करके हम एक वर्ष -तक निर्वाह करते हैं ।"
आर्द्रक - एक वर्ष में एक जीव को मारते हो, तो तुम दोष से निवृत्त नहीं माने जा सकते, चाहे भले ही तुम अन्य जीवों को न मारो। अपने लिए एक जीव का वध करने वाले तुम और गृहस्थों में क्या भेद है ? तुम्हारे समान अहित करने वाले व्यक्ति केवल- ज्ञानी नहीं हो सकते । "
वनैले हाथी का शमन
हस्तिपसों को निरुत्तर करके स्वप्रति बोधित ५०० चोरों आदि को साथ लिये आर्द्रक मुनि आगे बढ़ रहे थे कि रास्ते में एक जंगली हाथी मिला । सब बहुत घबड़ाये; पर वह हाथी आर्द्रककुमार के निकट पहुँच कर विनीत शिष्य की भाँति नतमस्तक हो बन की ओर भाग गया ।
उक्त घटना को सुनकर राजा श्रेणिक आर्द्रककुमार के पास गया और हाथी के बन्धन तोड़ने का कारण पूछा। उत्तर में आर्द्रक मुनि ने कहा——“हे श्रेणिक ! वनहस्ती का बन्धन मुक्त होना मुझको उतना दुष्कर नहीं लगता, जितना तकुये के सूत का ( स्नेह-पाश ) पाश तोड़ना । "
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