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________________ आर्द्रककुमार और वेदवादी आर्द्रककुमार और वेदवादी उसके बाद आद्रककुमार को वेदवादी द्विज मिला । वेदवादी द्विज ने कहा-"जो हमेशा दो हजार स्नातक-ब्राह्मणों को जिमाता है, वह पुण्य राशि प्राप्त करके देव बनता है, ऐसा वेद-वाक्य है।" आर्द्रक-बिल्ली की भाँति खाने की इच्छा से घर-घर भटकने वाले दो हजार स्नातकों को जो खिलाता है, वह नरकवासी होकर फाड़ने चीरने को तड़पते हुए जीवों से भरे हुए नरक को प्राप्त होता है—देवलोक को नहीं । दयाधर्म को त्याग कर हिंसा-धर्म स्वीकार करने वाले शील से रहित ब्राह्मण को भी जो मनुष्य भोजन कराये, वह एक नरक से दूसरे नरक में भटकता फिरता है । उसे देवगति नहीं प्राप्त होगी।" ___ आर्द्रककुमार और वेदान्ती वेदवादी के पश्चात् आईककुमार को वेदान्ती मिला। उस वेदान्ती ने कहा- "हम दोनों एक ही समान धर्म को मानते हैं, पहले भी मानते थे और भविष्य में भी मानेंगे। हम दोनों के धर्म में आचार-प्रधान शील और ज्ञान को आवश्यक कहा गया है। पुनर्जन्म के सम्बन्ध में भी हम दोनों में मतभेद नहीं है। "परन्तु हम एक लोक व्यापी, सनातन, अक्षय और अव्यय आत्मा को मानते हैं । वही सब भूतों में व्याप रहा है, जैसे चन्द्र तारों को।" आर्द्रक-"यदि ऐसा ही हो तो फिर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और प्रेष्य [ दास ], इसी प्रकार, कोड़े, पक्षी, साँप, मनुष्य और देव-सरीखे भेद न रहेंगे । इसी प्रकार विभिन्न सुखों और दुःखों का अनुभव करते हुए वे इस संसार में भटके ही क्यों ? "केवल ( सम्पूर्ण) ज्ञान से लोक का स्वरूप स्वयं जाने बिना जो दूसरों को धर्म का उपदेश देते हैं, वे स्वयं अपने को और दूसरों को क्षति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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