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आर्द्रककुमार और बौद्ध
आर्द्रकुमार और बौद्ध
गोशालक के बाद आर्द्रककुमार को बौद्ध मिला । बौद्ध भिक्षु ने कहा- - "खोल के पिंड को मनुष्य जानकर यदि कोई व्यक्ति उसे भाले से छेद डाले और अग्नि पर पकाये अथवा कुम्हड़े को कुमार मानकर ऐसा करे तो मेरे विचार से उसे प्राणिव का पाप लगता है । परन्तु, खोल का पिंड जान कर यदि कोई श्रावक उसे भाले से छेड़े अथवा कुम्हड़ा मानकर किसी कुमार को छेदे और उसे आग पर सेंके तो मेरे विचार से उसे पाप नहीं लगेगा । बुद्ध दर्शन में विश्वास रखनेवाले को ऐसा मांस कल्पता है । हमारे शास्त्र का ऐसा मत है कि, नित्य दो हजार स्नातकभिक्षुओं को भोजन करानेवाले मनुष्य महान् पुण्य स्कंधों का उपार्जन करके महासत्त्ववेत आरोग्य देव' होते हैं ।
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आर्द्रक-जीवों की इस प्रकार हिंसा तो किसी सुसंयमी पुरुष को शोभा नहीं देती । जो ऐसा उपदेश देते हैं और जो ऐसा स्वीकार करते हैं, वे दोनों अज्ञान और अकल्याण को प्राप्त होते हैं । जिसे संयम से प्रमाद - रहित रूप में अहिंसा-धर्म-पालन करना है, और जो त्रस - स्थावर जीवों को ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक - लोक में समझता है, वह क्या तुम्हारे कथनानुसार करेगा अथवा कहेगा ? जो तुम कहते हो वह संभव नहीं है—खोल के पिंड को कौन मनुष्य मान लेगा ?
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ही ऐसा कह सकते हैं । पिंड से कहना ही असत्य है । ऐसी वाणी हो । ऐसे वचन गुणहीन होते हैं
" क्या किसी पिंड को मनुष्य मान लेना सम्भव है ? अनार्य पुरुष मनुष्य की कल्पना कैसे होगी — ऐसा नहीं बोलनी चाहिए, जिससे बुरायी कोई दीक्षित व्यक्ति उन्हें नहीं बोलता ।
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१ - बौद्ध मतानुसार 'अरूपधातु' सर्वोच्च स्वर्ग है । दीर्घनिकाय ( हिन्दी ) में पृष्ठ १११, अरूप भव का अर्थ निराकार लोक दिया है ।
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