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तीर्थकर महावीर महया, सुमरुता, महामरुता, मरुदेवा, भद्रा, सुभद्रा, सुजाता, सुमना,, भूतदत्ता--नामक श्रेणिक की १३ रानियों ने प्रव्रजित होकर भगवान् के संघ में प्रवेश किया ।'
आर्द्रककुमार और गोशालक उसी समय आर्द्रक मुनि भगवान् का वंदन करने गुणशिलक-चैत्य की ओर आ रहे थे । रास्ते में उसकी भेंट विभिन्न धर्मावलम्बियों से हुई । सबसे पहले आजीवक-सम्प्रदाय का तत्कालीन आचार्य गोशालक मिला। गोशालक ने आर्द्रककुमार से कहा
"हे आर्द्रक ! श्रमण (महावीर स्वामी ) ने पहले क्या किया है, उसे सुन लो । वह पहले एकान्त में विचरने वाले थे। अब वह अनेक भिक्षुओं को एकत्र करके धर्मोपदेश देने निकले हैं। इस प्रकार उस अस्थिर व्यक्ति का वर्तमान आचरण उनके पूर्वव्रत से विरुद्ध है।"
यह सुनकर आर्द्रककुमार बोला-"भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों स्थितियों में उनका अकेलापन तो है ही । संसार का सम्पूर्ण स्वरूप समझ कर त्रस-स्थावर जीवों के कल्याण के लिए हजारों के बीच उपदेश देने वाला श्रमण या ब्राह्मण एकान्त ही साधता है ; क्योंकि उसकी आन्तरिक वृत्ति तो समान ही रहती है ।” और, फिर आर्द्रककुमार ने श्रमण के सम्बन्ध में अपनी मान्यता गोशालक को बताते हुए कहा-"यदि कोई स्वयं क्षान्त (क्षमाशील), दान्त ( इन्द्रियों को दमन करने वाला), जितेन्द्रिय हो, वाणी के दोष को जानने वाला और गुणयुक्त भाषा का प्रयोग करने वाला हो तो उसे धर्मोपदेश देने मात्र से कोई दोष नहीं लगता। जो महाव्रतों (साधु-धर्म), अणुव्रतों (श्रावक-धर्म), कर्म-प्रवेश के पाँच
१-अंतगडदसाओ (मोदी-सम्पादित) पृष्ठ ५१
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